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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उत्तराध्य यन सूत्रम् ॥४९७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ शुभ ध्यान करतां ते रात्रे सुखे निद्रा आवी अने निद्रामां एवं स्वप्न दीढुं के 'जाणे हाथी उपर आरूढ थइने हुं मंदर | गिरि उपर आरुढ थयो' सवारे ज्यां जाग्या त्यां नीरोग बनी गया; त्यारे तेणे विचार्य के—क्यांक ए पर्बत में जोयो ले. आम मनमा उहापोह करतां ए राजाने पोताना पूर्वभवनुं स्मरण थइ आभ्युं-तेने जातिस्मरण थयुं के ज्यारे पूर्वभवमां हुँ शुक्रकल्पमां देव थयो हतो त्यारे अत्नो जन्माभिषेक करवा माटे आ मेरुपर्वतमां आव्यो हतो. कंकणनुं दृष्टांत याद करी 'एकाकिप सुखकर छे' आयुं चितवन करतां प्रत्येकबुद्धत्वने पामी नमि मत्रजित थया. तदा राज्यमंतःपुर मेकपदे त्यजंतं नमि ब्राह्मणरूपेण शक्रः समागत्य परीक्षितवान्, प्रणतवांथ. शक्रपरीक्षासमये नमिराजसत्कं शक्रप्रश्नन मिराजर्व्युत्तररूपं सूत्रं कथयति- आ वखते एकदम राज्यनो त्याग करनारा नमिराजानी परीक्षा करवा ब्राह्मणं रुप धारण करी इंद्र आवीने प्रणाम करे | छे, त्यारे नमिराजने लगतुं इन्द्रकृत प्रश्न तथा नमिराजर्षिए आपेला तेना उत्तररूपकर गाथात्मक सूत्रग्रंथनो उपक्रम कराय छे. | नईऊण देवसोगाओ । उवन्नो माणुसंमि लोगंमिं ॥ उवसंत मोहणिजो | सरंई पोराणियं जाई ॥ १ ॥ जीई सरितं भयं । सर्ह संबुद्धो अणुर्त्तरे धम्मे ॥ पुतंववित्ते रजे । अभिनिक्खमई नमी राया ॥ २ ॥ मूलम् - (देय लोगाओ) देकलोकधी [चइऊण] चवीने ( माणुसम्मि लोगम्मि) मनुष्यलाकमां (उबवण्णो) उत्पन्न थया. ( उचसंत मोहणिज्जो) मोहनो नाश थयो छे तेवा नमिराजा (पोरणिअं) पूर्वनी (जाई) जातिने (सरह) संभारे है. ॥१॥ [भयचं) भगवान (नमि For Private and Personal Use Only 九儿美兆无儿无射美 भाषांतर अध्ययन ९ ॥४९७॥
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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