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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie आ अवसरे ए बन्नेनी माता साध्वी मदनरेखा प्रवत्तिनी साध्वी उपाश्रयमांनी मुख्य नियामक साध्वीनी आज्ञा लइने आ उत्तराध्य BEभाषांतर संग्राम रोकवा माटे प्रथम नमिराजाना सैन्यमां आव्यां त्यां नमिराजाए प्रणाम करी आसन उपर बेसाड्यां त्यारे नमिनी आगळ ||JE घन सूत्रम् अध्ययन | ते साध्वीए वाणी विस्तारी (बोल्या) के-'अनंत दुःखना पात्ररुप आ संसारमा मनुयभत्र पामीने पण पाप कर्म करवामां मोद्दथी ॥४९२॥ केम प्रवृत्त थाओ छो? हे राजन्! तमारा बंधु चंद्रयशाए पोतानी मेळे आवी नीकळेला हाथी कदाच पकडो लीधी तेटला माटे तेनी ॥४९२॥ RE साथे युद्ध केम आदरो छो? क्रोधवश थइ तमे कंइ पण जाणी शकता नथी. कधु छे के-लोभी०] लोभी धनप्राप्ति देखे छे, कामिनी पोताना कामुकनेज देखे छे. उन्मत्त वनेलो भ्रमन देखे छे अने क्रोधी आकुल थयेला कर देखता नथी. ॥१॥ इदं साध्वीवचो निशम्य नमिश्चितयामासायं चंद्रयशा युगवाहुपुत्रोऽस्ति, अहं तु पद्मरथपुत्रोऽस्मि, इयं साध्वी सत्यवादिनी सती कथं मम चानेन सम भ्रातृत्व वदतीति विमृश्य साध्वींप्रत्येवं भाषतेस्म हे पूज्ये! असोक? अहंक? भिन्नकुलसंभवयोर्मदेतयोः कथं भ्रातृत्वं बदसीति नमिनोक्त साध्वी प्राह हे वत्स! यौवने ऐश्वर्यभबं मदं मुक्त्वा यदि शृणोसि तदा सकलं स्वरूपं कथ्यते. अथ श्रोतुमुत्सुकाय नमितृपाय सर्व पूर्वस्वरूपं साध्वो जगाद, पुनरेवं सा यभापे सुदर्शनपुरस्वामी युगवास्तवास्य च पिता, अहं मदनरेखा तव मातेति, पद्मरथस्तु तव पालकः पिता, स्वमेन मात्रा समं मा विरोधं कुरु? बुध्ध्यस्व हितमिति साध्वीभोक्तं तथा युगयाहुनामांकितकरमुद्रादर्शनतश्च सर्व नमिः सत्यं मेने. आ साध्वीना बचन सांभळी नमिराजाना मनमा विचार आव्यो के-चंद्रयशा युगवाहुनो पुत्र के अने हुँ पारथनो पुत्र छु छतां وتعالى عدة فقه For Private and Personal use only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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