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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie भाषांतर अध्ययन ॥४९ अन्यदा नमिराज्ञो धवलकांतिर्गजो मदोन्मत्त आलानस्तंभमुन्मूल्यापरान हस्तिनोऽश्वान मनुष्यानपि त्रासयंश्चंउत्तराध्यपन सूत्रम् द्रयशोनृपनगरसीम्नि समायाता, चंद्रयशा नृपस्तमागतं श्रुत्वा समंतात्सुभटैर्वेष्टयित्वा स्ववशीकृत्य च जग्राह. नमि राजाष्टभिर्दिनस्तां वार्ता श्रुत्वा चंद्रयशोंतिके दृतं प्रेषितवान् , दृतोऽपि तत्र गत्वा धवलकरिणं मार्गयामास, कुपित॥४९॥ श्चंद्रयशा दृतं गले धृत्वा नगराहहिनिष्कासयामास, दूतोऽपि नमः पुरो गत्वा स्वापमानं जगौ, कुपितो नमिराजाऽतु लसैन्यैः परिवेष्टितोऽविच्छिन्नप्रयाणैः सुदर्शनपुरसमोपे समायातः, चंद्रयशा भूपतिः स्वसैन्यपरिवेष्टितो यावदभिJE मुखं युद्धार्थ चलितस्ताव्दपशकुनैारितो मंत्रिभिरेवमूचे, स्वामिन् ! कोई सज्जीकृत्य तव सांप्रतं पुरांतरेऽवस्थातुं युक्तं, Of कालविलंबेनैतत्कार्य कर्तव्यं. एक समये नमिराजानो धवलकांतिवाळो मदोन्मत्त हस्ती आलन(हाथी बांधवानो स्तंभ) उखेडी बीजा हाथी घोडा तथा मनु| प्योने त्रास पमाडतो चंद्रयशा राजाना नगर सीमाडे आव्यो. आ खबर चंद्रयशाने थतां तेणे पोताना मुभटो मोकली चारेकोरथी ए | हाथीने घेरी लइ पोताने वश करी पकडी मंगाव्यो. आ वातनी नमिराजाने आठ दिवसे खबर पडतां तेणे चंद्रयशा राजा पांसे दूत | मोकल्यो. दूते त्यां जइने ए धवल हस्तीनी मागणी करी, आ उपरथी चंद्रयशाए क्रोधाविष्ट थइ दुतने गळची पकडी नगरनी बहार कढावी मोकल्यो. आ दूते नमिराजा पांसे जइ पोताना अपमाननी तमाम हकीकत कही संभळावी; ते सांभळी कुपित थयेला नमिराजा पोतानु अतुल सैन्यथी घेरायेला सतत प्रयाण करी सुदर्शनपुरनी समोपे आवी पहोंच्या. अहीं चंद्रयशा भूपति पण पोतानी | समग्र सेना लइ युद्ध करवा माटे ज्यां अभिमुख चाल्या त्यां अपशकुने रोक्या; मंत्रियोए कयु के-'स्वामिन् ! नगरना किल्लाना पाको For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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