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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www bath.org Acharya Si Kailassagersuri Gyanmandie भाषांतर अध्ययन ॥४७॥ आवां पहेरेगीरना वचन सांभळी अप्सराधी पण अधिक तेणीनु रूप जोइ कामात राजा चंडमधोते विचार्यु के-'जो आ मारी उत्तराध्य-JE पन सत्रम् पत्नी थाय तो मारु जीवित सफळ थाय अने आ राज्यभ्रंश पण मारा कल्याणने माटे थयो के जेथी आ कन्यानुं दर्शन थयु. 'जो द्विमुख राजा पोतानी आ पुत्री मने परणावे तो जीवता सुधी हुँ तेनो सेवक रहूं.' चंढप्रद्योतनो आ अभिपाय पेहेरेगीरे राजा द्विमु॥४७५॥ खने जाहेर कर्यो, त्यारे राजा द्विमुखे हुकम कर्यो ते उपरथी पहेरेगीरो चंडप्रद्योत राजाने द्विमुख राजा पांसे सभामा तेडी लाव्या, आ वखते द्विमुखराजाए अभ्युत्थान आपी चंदमयोतने पोताना अर्थासन उपर बेसाड्या त्यारे हाथ जोडीने चंडप्रद्योत बोल्या केमारा प्राण आपने ताचे छे, मारी तमाम राजलक्ष्मी तमारे आधीन छे. तमे मारा स्वामी प्रभु-छो अने आजथी हमेशनो हुँ आपनो सेवक छं. अथ तद्भाववेत्ता दिमुखराजा चंडप्रद्योताय तदैव निजां पुत्री ददौ, ज्योतिर्विद्भिः सुमुहर्ते दत्ते चंउप्रद्योतनृपो दिमुखराजपुत्रीं परिणीतवान, करमोक्षावसरे च तस्मै धनं द्रव्यं दत्तमवंतीदेशं च दत्तवान् , कन्यासहितं चंडप्रद्योतं स्वदेशे दिमुखो विसर्जितवान. राजा द्विमुखे चंदपयोतनो भाव जाणी पोतानी पुत्री मदनमंजरी तेने आपी अने ज्योतिपीओए बतावेल शुभ मुहूर्ते चंडपद्योत BE राजा द्विमुखराजानी पुत्रीने परण्या. कन्यानो हाथ राजाना हाथमा आपती वेळाये तेने घणुंक धन तथा बीजा पदार्थों सहित अवंती | देशनुं तेनुं राज्य आपीने कन्या सहित चंडप्रद्योत राजाने द्विमुखराजाए तेने देश पहोंचाया. For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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