SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie भाषांतर अध्ययन८ 1४५१॥ उत्तराध्य- दुःपूरक दुःखे करीने पूराय एवो अर्थात् नन पूराय एवो कहेल छे. १६ यन मूत्रम् पूर्वोक्त अर्थने दृढ करवा फलितार्थ कथन पूर्वक कहे छे. ॥४५ ॥ ___ जहा लाहो तही लोहो । लाहा लोहो पढइ ॥ दोमासकयं कोजं । कोडिएवि ने निट्टियं ॥ १७ ॥ मूलार्थ-(जहा) जेम जेम (लाहो) लाभ थाय छे. (तहा) तेम तेम लोहो] लोभ वधतो जाय, लाहा) लाभधी (लोहो) लोभ (पब ह] वृद्धि पामे छे जुभो! (दोमासक') ये मासा सुवर्ण माटे करेलु (कर्ज) कार्य (कोडीए वि) कोटी द्रव्य वडे पण (न निटिअं) 26 पूर्ण थयु नहि १७ च्या०-यथा लाभस्तथा लोभः, लाभालोभः प्रवर्धते, द्विमाषार्थ विमाषप्रमितस्वर्णग्रहणाध कृतं कार्य स्वर्णकोटी| भिरपि 'न निट्टियं न निष्टितं, पूर्ण न जानमित्यर्थः. माषं तु पंचगुंजाप्रमाणं, माषद्वयप्रमितस्वर्णेन कार्य दास्याः पुष्प| तांबूलवस्त्राभूषणादिमूल्यरूपं, तत्कार्य कोटिद्रव्ये गापि परिपूर्ण नाभूत्. ॥ १७॥ स्त्रीमूला हि तृष्णेनि हेतोस्तत्परिहारार्थ गाथामाहु अर्थ-जेम जेम लाभ थतो जाय तेम तेम लोभ वधतो जाय, कारणके लाभे लोभ वृद्धि पामे छे जेम चे मासा कनकने काजेचे |माषा मुवर्ण लेवा माटे करेलु कार्य अंते सुवर्ण कोटिथी पण निष्ठित न थयु परिपूर्ण न मनाj. आ अध्ययना आरंभमां कपिल कथा प्रसंगे चे मापा एटले दश चणोठीभार सोनाथी जे कार्य-दासीने पुष्पाबूल वस्त्राभूषण वगेरेने माटे मूल्यरूप धारेल ते कार्य राजाने For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy