________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उत्सराध्यपन सूत्रम्
و
॥४२७॥
س ریال به بالتسعينيات الالمافيا لتقد
तथा सुख, आ छये गुणमां 'अनुत्तर' ए विशेषण लागु पडे छे अर्थात ए छए ज्यां उत्कृष्ट प्रकारनां होय; तर तेवा मानुष्यमा भाषांतर भूयः वारंवार ते जीव उत्पन्न थाय छे. २७
अध्ययन बालेस्स पैस्स बोलतं । अहंम्म पडिवजया ॥ चिचा धम्म अहम्मिहे नरए उवजइ ॥ २८ ॥
॥४२७|| | मूलार्थ-हे शिष्य! तु (बालस्स) मूर्खनु (चालत) मूर्खपणु (पस्स) जोके (अहमिहे) ते अधर्मी मनुष्य (महम्म) अधर्मने (पडिवजिआ) अंगीकार करीने तथा (धम्म) धर्मनो (तिचा) त्याग करीने (नरपसु) नरकने विषे (उववज्जइ) उत्पन्न थाय छे २८
व्या०-हे शिष्य! तं बालस्य हिताहितज्ञानरहितस्य बालत्वं मुखत्वं पश्य? स अधर्मिष्टो बालो धर्म त्यक्त्वा अधर्म प्रतिपद्य नरके उत्पद्यते ॥ २८ ।।
अर्थ-हे शिष्य! ते बाल एटले पोताना हित अथवा अहित ज्ञानथी रहित जीवन बालव-मूर्खता तो जोके ते अधर्मिष्ट बाल धर्मने त्यजीने अधर्मने प्रतिपन्न थतां नरकमां उत्पन्न थाय छे. २८
धीरस्स पर्स धीरत्तं । सव्वधम्माणुवत्तिणो ॥ चिच्चा अधम्म धम्मिहे । देवेसु उर्ववजई ॥२९॥ मुलार्थ-तथा (सव्वधम्माणु वत्तिणो) सर्व धर्मने अनुसरनारा [धोरस्स] धीरना (धीरत्त) धीरपणाने [पस्स] तुं जोके (धम्मि?) ते 30 धर्मिष्ट (अधम्म) अधर्मनो (चिञ्चा) त्याग करीने दिवेसु) देवोने विषे [उववजह] उत्पन्न थाय छे, २९
व्या०–हे शिष्य! धीरस्य पंडितस्य धीरत्वं पश्य? त्वं विचारय? धिया राजत इति धीरः, धियं बुद्धि राति ददा
For Private and Personal Use Only