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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie उत्तराध्यall मेळेज सत्यने एटले सत्पुरुषोना हितकर संयमनी अभिलाषा करे, वळी ते पंडित, बहु घणा पाशनातिपथ-परवशताना हेतु पुत्र स्त्री वगेरे भाषांतर पन सूत्रम् पाश, एज मोह हेतु होइ एकेन्द्रियादि जातिना मार्गरूप जोइ जाणी, पृथ्वी आदिकथी पट्कायने विषये मैत्रीनी कल्पना करे.स्त्रीपुत्रादि 11 अध्ययन | कने विषये ज्यारे मोह करे छे त्यारे जीवने एकेन्द्रियादिभाव बंधाय छे एटला माटे पंडित ए पाशथी मुक्त रही संयमाभिलाषी थाय. ॥३८७॥ ॥३८७॥ माया पियोण्हुसा भाया । भजो पुत्ताय ओरसा ॥ नॉलं ते मम ताणाय। लैप्पंतस्स सम्मुणा ॥३॥ २१ मूलार्थः-(माया)-माता [पिया)-पिता [ण्डसा)-पुत्रवधू (भाया)-भाइ (भजा)-भार्या (पुत्ता)-पुत्ररुपे मानेला [य]-तथा (ओरसा) ३६ पोतेज उत्पन्न करेला पुत्रो (ते) ते सर्वे [ सकम्मुणा -पोताना कमें करीने (लुप तस्स)-पीडा पामता एवा (मम) मारा (ताणाय]= रक्षण माटे [अल'न-समर्थ नथी ॥ ३॥ व्या०-पंडित इति विचारयेदित्यध्याहारः कर्तव्यः, इतीति किं? एतेमन त्राणाय मम रक्षायै नगलं न सनर्थाः कथं| भूतस्य मम? खकर्मणा लुतस्य स्वकर्मणापीडधमानस्य, पते के? माता पिता स्नुषा बंधुर्धाता सहोदरोभार्या पत्नी पुत्राः पुत्रत्वेन मानिता; च पुनः 'ओरसा' स्वयमुत्पादिताः, पते सर्वेऽपि स्वकर्मसमुद्भूतदुःखाद्रक्षणाय न समर्था भवतीत्यर्थः । अर्थः-माता, पिता, स्नुपा-पुत्रनी वधु, भ्राता बंधुः सहोदर भार्या पत्नी; पुत्रो=पुत्ररूपे मानेला तथा औरस-पोते उत्पन्न करेला |Jt JEL पुत्रादिक; आ सर्वे-स्वकर्मवढे लोपातो; अर्थात् पोतानाज कर्मोवडे पीडा पामतो एवो जे हु तेना त्राण-रक्षण-मां न अल अर्थात मारा पोतानाज कर्मथी समुद्भूत दुःखथी मारुं रक्षण करवामां उपर कहेलामांना कोइ समर्थ नथी; आम पंडित विचारे-आटलो अध्याहार करचो. For Private and Personal Use Only
SR No.020855
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorLakshmivallabh Gani
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size15 MB
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