________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सटीक
ममायुःस्थितिज्ञेया. ॥ २४ ॥ ॥१२७॥ ॥ मूलम् । -सागरा साहिया दुन्नि । उक्कोसेण ठिई भवे ॥ ईसाणंमि जहन्नेणं । साहियं पलि
ओवमं ॥ २५ ॥ व्याख्या-ईशाने ईशानदेवलोके उत्कृष्टेन द्वे सागरोपमे साधिके आयुःस्थितिर्भवेत्. जघन्यतस्तु तत्रायुःस्थितिः साधिकं पल्योपममस्ति. ॥ २५ ॥
॥ मूलम् ॥-सागराणि य सत्तेव । उकोसेण ठिई भवे ॥सणंकुमारे जहन्नेणं । दुन्निओ हासागरोवमा ॥ २६ ॥ व्याख्या-सनत्कुमारे उत्कृष्टेन सप्तव सागरोपमाण्यायुःस्थितिर्भवेत. जघन्येन द्वे सागरोपमे आयुःस्थितिः. ॥ २६ ॥
॥ मूलम् ॥-साहिया सागरा सत्त । उक्कोसेण ठिई भवे ॥ माहिदंमि जहन्नेणं । साहिया ( दुन्नि सागरा ॥ २७ ॥ व्याख्या-माहिंद्रे देवलोके साधिकानि सप्तसागरोपमाण्युत्कृष्टेनायुःस्थिति|| भवेत्. जघन्येन साधिके द्वे सागरोपमे आयुःस्थितिः ॥ २७ ॥
॥ मूलम् ॥-दसेव य सागराओ । उक्कोसेण ठिई भवे ॥बंभलोगे जहन्नेणं | सत्तओ साग
A-CA-GUAGECAREAKI
HRESCARRIERAPEKCA CPI-CONG
6॥१२७४॥
For Private And Personal Use Only