________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः। प्रस्तावास्तावदष्टाच विधास्यन्ते परिस्फटाः / प्रत्येक तेषु वक्रव्यो योऽर्थस्तं मे निबोधत // 56 // प्रस्तावे प्रथमे तावन्निबद्धवा येन हेतुना / इयं कथा मयेदृक्षा स हेतुः प्रतिपाद्यते // 6 // द्वितीये भव्यपुरुषो मानुष्यं प्राप्य सुन्दरम् / यथात्महितजिज्ञासुः समासाद्य सदागमम् // 61 // तदन्तिकस्यः संमारिजीवस्य चरितं यथा / श्रुत्वाग्रहौतमंकेताव्याजात्तेनैव सूचितम् // 62 // तिर्यगवक्रव्यताबद्धं मार्द्ध प्रज्ञाविशालया। विचारयति निःशेषं तदिदं प्रतिपाद्यते // 6 // कुलकम् // तथा बतौयप्रस्तावे हिंसाक्रोधवशानुगः / स्पर्शनेन्द्रियमूढश्च यथा दुःखैर्विबाधितः // 64 // संमारिजौवः संसारे भ्रष्टो मानुष्यजन्मतः / इदं संसारिजौवस्य सुखेनैव निवेद्यते // 65 // युग्मम् // पुनशतर्थप्रस्तावे मानजिबानतेषु भोः / रकः संसारिजीवोऽसौ यथा दुःखैः प्रपौडितः // 66 // भूयवानन्तममारमपारं दुःखपूरितः / यथा धान्त इदं सर्व मविशेष निगद्यते // 6 // युग्मम् / For Private And Personal Use Only