________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपमितिभवप्रपञ्चा कथा / प्रस्तावे पञ्चमे त्वत्र विपाकः स्तेयमाययोः / उकः संसारिजीवेन तथा प्राणेन्द्रियस्य च // 68 // तथात्र षष्ठप्रस्तावे लोभमैथुनचक्षुषाम् / विपाको वर्ण्यते तेन योऽनुभूतः पुरात्मना / ' 68 // युग्मम् // प्रस्तावे सप्तमे सर्व महामोहविजृम्भितम् / परिग्रहस्य श्रोत्रेण सहितस्येह वर्णितम् // 70 // किंतु // बतौयात्मप्तमं यावदत्र प्रस्तावपञ्चके / नस्थ संसारिजौवस्य यहत्तान्तकदम्बकम् // 7 // तत्किञ्चित्तस्य संपन्नं किंचिदन्यैर्निवेदितम् / तथापि तत्प्रतीतत्वात्मवें तस्येति वर्णितम् // 72 // युग्मम् // अष्टमे मौलितं सर्व प्रस्तावे पूर्वसूचितम् / तेन संसारजौवेन विहितं चात्मने हितम् // 73 // नव संसारिजीवस्य वृत्तं भवविरञ्जनम् / आकर्ण्य भव्यपुरुषः प्रबुद्ध इति कथ्यते // 74 // तथा संसारिजौवेन भूयो भूयः प्रचोदिता / बुद्धवाग्रहीतसंकेता कृच्छ्रेणातिनिवेद्यते // 7 // श्रासाद्य निर्मलाचार्य केवलालोकभास्करम् / समस्तोऽप्यात्मवृत्तान्तः पृष्टः शिष्टोऽवधारितः // 7 // .. For Private And Personal Use Only