________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उमितिभवप्रपञ्चा कथा / भने किमिदमाश्चर्य शरीरं मम वर्तते / एतदुःखाकर पूर्वं यत्मुखाकरतां गतम् // 6 // मा प्राह जातमेतत्ते मम्यक्पथ्यनिषेवणात् / समस्तदोषमूलेऽस्मिन्नहिते लौल्यवर्जनात् // 61 // मत्सान्निध्याच ते भद्र भुञानस्य कदन्नकम् / प्रागभ्यासवशाचित्ते लज्जात्यर्थं प्रजायते // 2 // सन्जया तस्य सम्भोगोऽकार्यरूपः प्रकाशते / ततश्च ग्रह्ययोगेन कामचारो निवर्त्तते // 63 // ततस्तमुक्कमप्यङ्गे नात्यर्थं रोगवर्द्धनम् / तेनैषा हादसंवेद्या जाता तव सुखासिका // 4 // इतरवाह यद्येवं सर्वथापि त्यजाम्यहम् / अदः कदन्न मे येन जायते सुखमुत्तमम् // 65 // मा त्वाह युज्यते किन्तु सम्यगालोच्य मंत्यज / माभूत्ते खेहदोषेण प्रागिवाकुलता पुनः // 66 // यदि त्यक पुनस्तेऽत्र खेहाबन्धोऽनुवर्तते / ततोऽत्यागो वरः कस्मात् खेहोऽस्मिनोगवर्धकः // 6 // अत्याल्पमनतोऽप्येत षजचयसेवनात् / मांप्रतं याप्यता तेऽस्ति मापि चात्यन्तदुलभा // 8 // सर्वत्यागं पुनः कृत्वा यत्स्यात्तदभिलाषुकः / याप्यतामपि नाप्नोति म महामोहदोषतः // 66 // तदेतत्सम्यगालोय यदि चेतसि भामते / ततोऽस्य सर्वथा त्यागो युज्यते कर्तमुत्तमैः // 4.. // For Private And Personal Use Only