SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टतीयः प्रस्तावः / निरूपयति सर्वाणि देवकर्माणि यत्नतः // देवपूजनसद्धूपदीपदानादिपूर्वकम् / भनोत्कंठितसर्वाङ्गो भून्यस्तकरजानुकः / दुर्लभं भवकान्तारे जन्तुभिर्जिनवन्दनम् / इति भावनया धन्यो निर्मलीभूतमानमः // श्रानन्दजलपूर्णाक्षः क्षालयन्नात्मकिल्बिषम् / तथा भागवते बिम्बे न्यस्तदृष्टिर्विचक्षण: // शक्रस्तवं शौरः पठित्वा भक्निनिर्भरः / पञ्चांगप्रणिपातान्ते निषणः शुद्धभूतले // परस्परतिरोभूतकरशाखाविनिर्मिताम् / कोशाकारकरः कृत्वा योगमुद्रां समाहितः / ततो भुवननाथस्य स्तोत्राणि कलया गिरा / म तदानौं पठत्येवं तदर्थापितमानसः // नमस्ते जगदानन्द मोक्षमार्गविधायक / जिनेन्द्र विदिताशेष भावमद्भावनायक // प्रलीनाशेषसंसारविस्तार परमेश्वर / नमस्ते वाक्ययातीत चिलोकनरशेखर // भवाब्धिपतितानन्तमत्त्वसंतारकारक / घोरसंमारकान्तारमार्थवाह नमोऽस्तु ते // अनन्तपरमानन्दपूर्णधामव्यवस्थितम् / भवन्तं भक्तितः साक्षात्पश्यतीह जनो जिन // स्तुवतस्तावकं बिम्बमन्यथा कथमौदृशः / For Private And Personal Use Only
SR No.020849
Book TitleUpmiti Bhav Prapanch Katha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages579
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy