________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमः प्रस्तावः। अथ तत्र पुरे राजा सुस्थितो नाम विश्रुतः / समस्तसत्त्वसंघस्य खभावादतिवत्सलः // 38 // अटाव्यमानोऽसौ रक्ङः संप्राप्तस्तस्य मन्दिरम् / स्वकर्मविवरो नाम तत्रास्ते द्वारपालकः // 36 // म द्वारपालस्तं रोरं दृष्ट्वातिकरुणास्पदम् / प्रावेशयत् कपालुत्वादपूर्व राज्यमन्दिरम् // 4 // तच कीदृशम् // रत्नराशिप्रभाज्वालैस्तमोबाधाविवर्जितम् / रणनानपुराद्युत्थभूषणरावसुन्दरम् // 41 // देवपट्टांशकोल्लो चलोलमौक्तिकमालिकम् / ताम्बललालिताशेषलोकवक्रमनोहरम // 42 // विचित्रभक्रिविन्यासैर्गन्धोद्धरसुवर्णकैः / पाकीणं प्राङ्गणं माल्यैः कलालिकुलगीतिभिः // 43 // विलेपनविमर्दन कर्दमौकृतभूमिकम् / प्रहष्टमत्त्वमंदोहवादितानन्दमर्दलम् // 44 // अन्तर्वजन्महातेजःप्रस्नयोभूतशत्रुभिः / बहिःप्रशान्तव्यापारै राजवृन्दरधिष्ठितम् // 45 // माक्षात्भूतजगच्चेष्टेः प्रज्ञावज्ञातवैरिकैः / समस्तनौतिशास्त्रज्ञैर्मन्त्रिभिः परिपूरितम् // 46 // पुरः परेतभर्तारं येऽभिवौक्ष्य रणाङ्गणे / न क्षम्यन्ति महायोधास्तैरसंख्यैर्निषेवितम् // 4 // For Private And Personal Use Only