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चिं
नाभा. ४
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॥ मूलम् ॥ -- - जिपई सुहेण त्रयणं । जिवंति सुहेब कायचिद्वा ॥ पण डुझे अवगय | सुसारसावि मणमिणमो ॥ ८५ ॥ व्याख्या -जीयते सुखेनानायासेन वचनं नं - टपुटमीलनेन स्वाध्यायादिना वा कायचेष्टा अपि सुखेन जीयंते, यासनबंधेन वैयावृत्त्यादिव्यावृततया वा पुनरिद साक्षादनुभूयमानं मनोवगतश्रुतसारम्यापि परिशीलित प्रवचनंरहस्यस्यापि मुनेर्दुर्जेयं चपलत्वात्. ॥ ८५ ॥ ततस्ततयोपायमाह
॥ मूलम् ॥ -- ता तस्स थिरीकरणड - मायरो जावणासु कायवो ॥ ता अहा अ ऐगा । सुहाउँ एवं दुआ लसदा || ६ || व्याख्या - उत्तानार्था, ता एवमाद
॥ मूलम् ॥ - अधुवासरणेगत्ता - वरत्तजव असुइ व्यासवोवाए ॥ संवर निरधम्मे । लोगं बोहिं च जावेइ ॥ 09 ॥ व्याख्या - एषा द्वारगाथा व्यक्तार्या ॥ 09 ॥ तत्र पूर्वमधुमवत्वभावनामाह -
॥ मूलम् ॥ -- सामित्तणघण जुवण- रबवला जइहसंजोगा | श्लोला घणपत्रणा -हयपायवपकपत्तव ॥ ८० ॥ व्याख्या -सुगमा एवं समस्तजावानामधौव्यं जावयन धवेन्यो
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