SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपचि || कप्पन दिवा' अपवादतस्तु मार्गश्रमादिकारणैः सोऽपि कल्पते ॥ ४३ ॥ एवं ४ स्वापविधिमुक्त्वा यथ विधिशेषमाद॥ मूलम् ॥ -- जायंमि १०६५ रते । गिन्दर तो अरतियं कालं ॥ इनिहावसएणं । न साहु कवि वि ॥ ४४ ॥ व्याख्या - स्पष्टा, न वरं उत्कृष्टो विधिरुक्तः, यदाहकालचकं उक्को -सएप जहन्नतियं तु बोधवं ॥ बीयपयंमि डुगंतं । मायामयविध्यमुके यति ॥ १ ॥ ४४ ॥ अथ याममर्यादाविधिमाह - ॥ मूलम् ॥ -- सबे पड़मे जामे । वसहा बीए तहा गुरु तईए || जग्गति चरमपदरे । सबे एसा हु गणमेरा ॥ ४५ ॥ व्याख्या -- स्पष्टा, नवरं समर्थ गीतार्थाश्च साधवो वृषताः, एसत्ति एषः, हु अवधारणे गणस्य समुदायस्य मेरा मर्यादा, यत्र च समुदायो न स्यात्तत्र यथायोग्यं स्वापजागरौ कार्यों, न चास्य विधेरवकाशः ॥ ४५ ॥ एवमहोरात्रानुष्ठानमुक्त्वाथ नित्यचिंतामाह ॥ मूलम् ॥ किं तव चरणं चिनं । किमदीयं किं कयं कवकजं ॥ किं वा मे कय For Private and Personal Use Only -
SR No.020847
Book TitleUpdesh Chintamani Satik Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1922
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy