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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औ०१९/ रा० २० जी० २१ प्रज्ञा०२२ ॥५०॥ च०/२४ जं० २५ नि० २६ प्रकी०२७ निंदामि निंदणिज २७-१४१ | नेरइया f० कह इंदिया २२-१९३० | नेराया गं० नेरइयत्ते के० २२-३३९सू० नीअंगमाहिं सुपओहराहिं २७-३९१. , , कइ लेसाओ २२-२३५स० |.., णं भंते ! केवाइयं० २२-९४सू० नीलवंतद्दहस्स णं पुरस्थि० २१-१५१सू० , , कति भागाव०२२-१४४सू० ., ,, केवतियं २१-२२३सू० | नीलाणुरागवसणा २२-१४९ कतो उ०२२-१२९सू० |, पं० सब्वे समकम्मा २२-२०७० नेहए णं० जाई २२-१७१सू० किं अर्णतरा० २२-२५७सू० | नेरहयाणुप्पाओ.. २१-२० , नेरासु २२-२२२सू० ,,, आहारस० २२-२४८सू० नेर० कतोहिंतो उव० २२-१२९सू० , नेरहपहितो २२-२५९सू० ,, ,, एगिदियस०२२-३०८सू० नेसप्पे पंडुअए २५-२८ नेरहयअंतकिरिया २२-२१३ ,,, ओयाहारा २२-३०९सू० नेहक्खेवे दीवो २७-१५७९ नेहयतिरियमणुया २२--२२१ , ,,, सचित्ता० २२-३०४सू० पउमलया णागलया २२--२९ नेरइयदेवतित्थंकरा २७-११६७ , , , संतरं उव०२१-१२६सू० पउमा पउमप्पभा चेव नेरइया f० अणंतरं उब्व०२२-१३८सू० ,,, संतरं, २२-१२५सू० पउमुत्तरे णीलवंते , , अणंतराहारा २२-३२२सू० ,, ,, सिता जोणी २२-१५०सू० पउमुष्पलनलिणाणं २२-९० नेरइया f० आहारे किं २२-३२३सू० ,, केवइयं खेत्तं २२-३१९सू० पउमुप्पल संघाडे , ,, एग० के २२-१२८० केवइया पजवा २२--१०४सू० पउमुप्पलिणीकंदे , ,, एगसमएणं २२-१२७मू० , केवतिकालस्स २२-१४६सू० | पक्कमंतेसु सउणेसु २७-९०७ , , ओहिस्स किं २२-३२१मू० , केवतिया २२-१७८सू० | पञ्चक्खाइ य ताहे २७-२५७५ , ओही किंसंठिए २२-३२०सू० " , के. वेदणासमु०२२-३३५सू० | पश्चक्खाविति तभो तं २७-३२० ॥५०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020842
Book TitleUpang Prakirnak Sutra Vishaykram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Pracharak Samstha
PublisherJain Pustak Pracharak Samstha
Publication Year1948
Total Pages183
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_index
File Size10 MB
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