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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatrth.org औ०१९ रा० २० जी०२१ प्रज्ञा०२२ ॥५१॥ चं०/२४ जं० २५ नि० २६ प्रकी०२७ पच्छायावपरको २७-२९० | पढमम्नि य संघयणे २७-१७६८ पण्णावीसं जोअणसयाई पच्छावि ते पयाया २७-६३८ पढमं अट्ठारसगं २७-१३२३ | पण्णासंगुलदीहो पजलंति जत्थ धगधग. , अणियभावं २७-१८०७ | पत्तउरसी य उरए पज्जत्तए णं पुच्छा २२-२४९सू० , बट्टविमाणं २७-१९३९ पत्तं विचित्तविरसं पज्जलियं हुयवह २७-७५८ | पढमा णं भंते! पुढवी किनामा पत्ता उत्तमपुरिसा पडिणीययाइ केसि २७-१७१७ किंगोत्ता २१-६८सू० | पत्ताणि दुहसयाई पडियन्नसाहुसरणो पदमित्थ नीलबंतो २५-४६ पत्तेण अपत्तेण य पडिपिल्लिअ कामकलि | पढमिल्लुगंमि दिवसे पत्तेय विमाणाणं | पडिणीया २७-२७ | पढमीपंचमि दसमी २७-८५४ | पत्तेयं पत्तेयं नियगं पडि(णिय)मायगओ अ मुणो २७-१७०२ | पढमो तइओ नवमो पत्तेया पजत्ता प.डेमासु सीह निक्कीलियासु २७-१२७५ पढमो तइओ सत्तमो। २२-२८७ पत्तेसुवि एपसुं | पाडेवसीओ उदए ,, सोहम्मबई २७-१०९१ पन्नरसइभागेण पणपण्णा य परेणं पडप्पन पुढ वि० केवति मिल्लया पणयालीसं आयामवि० २७-१२०३ पन्नवणा ठाणाई २१-१०३सू० पण पीसट्ठारसबारसेव पन्नासयस्स चक्ले पढंतु साहुणो एभं २७-८४५ पण्णरसाइभागेण य पष्फोगडियकलिकलुसा पढमणरीसर ईसर २५-२३ | पण्णरस सतसहस्सा २४-३३ | पभू अन्नयरो इंदो २७--११८४ २५-१८ २२-२३ २७-१७९९ २७-६०५ २७-१४५४ २७-४३ २७-१९४८ २७-१८२१ २२-१०६ २७-१८६९ २७-१०७३ २१-७० २७-४९० २७-९९२ ॥५१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020842
Book TitleUpang Prakirnak Sutra Vishaykram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Pustak Pracharak Samstha
PublisherJain Pustak Pracharak Samstha
Publication Year1948
Total Pages183
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_index
File Size10 MB
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