________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुलसी शब्द-कोश
631
पोत : सं०० (सं.)। (१) नाव, जहाज । मा० ७.१ क (२) बालक । 'रे कपि
पोत बोल संभारी।' मा० ६.२१.१ पोतक : संपु० (सं.)। बालक । 'जो सब पातक-पोतक डाकिनि ।' मा०
२.१३२.६ पोतो : पोत+कए । बच्चा । 'चित चातक सो पोतो।' विन० १६१.२ पोथिन : पोथी+संब० । पोथियो (में)। दो० ५५७ पोथिही : पोथी (में) ही । पयत पोथिही पुरान ।' विन० १९२.२ पोथी : सं०स्त्री. (सं० पुस्तिका>प्रा० पोत्थिआ>अ० पोत्थी)। ग्रन्थ । रा०प्र०
७.७.१ पोली : वि०स्त्री० । अन्तःसारशून्य, भीतर सार-रहित, खोखली। 'राम प्रीति
प्रतीति पोली, कपट करतब ठोसु ।' विन० १५६.२ पोष : पोषइ । पोषण देता है। दो० ५२५ 'पोष पोषइ : (सं० पोषयति>प्रा० पोसइ) आ०प्रए । अनुग्रह करता है, पुष्टि
देता है । 'पालइ पोषइ सकल अंग ।' भा० २.३१५ पोषक : वि० (सं०) । पुष्ट करने वाला-वाले । 'तनु पोषक नारि नरा सगरे।'
मा० ७.१०२.१० पोषण : सं०० (सं.)। पुष्टि (सारसँभाल), अनुग्रह । विन० ५५.६ पोषत : वक०० (सं० पोषयत्>प्रा० पोसंत)। पुष्ट करता। 'राम सुप्रेमहि
पोषत पानी ।' मा० १.४३.३ पोषन : पोषण । मा० १.१६७.७ पोषनिहारा : वि.पुं० । पुष्ट करने वाला । 'भानु कमल कुल पोषनिहारा ।' मा०
२.१७.७ पोषि : पक० (सं० पोषयित्वा>प्रा० पोसिअ>अ० पोसि)। पोषण =अनुग्रह
देकर, सन्तुष्ट अनुग्रहीत करके । 'प्रेम पोषि ठाढ़े सब कीन्हे ।' मा० १.३४०.२ पोषिबे : भक०० (सं० पोषयितव्य>प्रा० पोसिअव्वय) । पुष्ट करने । 'सोषिबे
को भानु पोषिबे को हिमभानु भो।' हनु० ११ पोषिये : आ०कवा०प्रए० (सं० पोष्यते>प्रा० पोसीअइ)। पुष्ट करिए, अनुग्रहीत ___ कीजिए । 'अब गरीब जन पोषिये।' विन० १४६.४ पोषिहैं : आ०म०प्रब० (सं० पोषयिष्यन्ति>प्रा० पोसिहिति>अ. पोसिहिहिं) ।
अनुग्रहीत होंगे, पुष्ट किये जायेंगे । 'बिबुध प्रेम पोषिहैं ।' कवि० ६.२ पोषीं : भूकृ०स्त्री०ब० । पुष्ट की, अनुग्रहीत की गईं। 'जनु कुमुदिनी कौमुदीं पोषों।'
मा० २.११०.४ पोषे : भूकृ००ब० (सं० पोषित>प्रा० पोसिय) । अनुग्रहीत किये, पृष्ट किये ।
'सुनि बर बचन प्रेम जन पोषे ।' मा० १.३४२.६
For Private and Personal Use Only