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तुलसी शब्द-कोश सुधारी : (१) भूकृस्त्री० । शुद्ध कर दी। ‘राम कृपा अवरेब सुधारी ।' मा०
२.३१७.३ (२) सुधारि । 'सुजन सुमति सनि लेह सुधारी।' मा० १.३६.२ सुधारे : भूक००ब० । ठीक किये, सँभाले । 'उठि रघुबीर सुधारे बाना ।' मा०
६.८६.७ सुधासार : अमृत-सार, अमृत का निचोड़ । किवि० ५.२ सुधि : सं०स्त्री० । (१) स्मृति, ध्यान, चिन्तन, स्मरण । 'सो सुधि राम कीन्हि
नहिं सपनें ।' मा० १.२६.२ (२) समाचार (खबर) । 'खेलत रहे तहाँ सुधि
पाई ।' मा० १.२६०.७ सुधिबुधि : स्मृति तथा बुद्धि (होशोहवास); चेतना; बिवेक । “उमा नेह बस
बिकल देह सुधि-बुधि गइ ।' पा०म० २६ सुधी : वि० (सं.)। उत्तम बद्धि (धी) वाला=विद्वान् । विन० २५५.४ सुधीर : वि० (सं.)। (१) उत्तम बुद्धि वाला, (२) अत्यन्त धेयंशाली । 'बीर
सुधीर धुरंधर देवा ।' मा० २.१५०.४ (यहाँ उत्तम धैर्य का भी तात्पर्य आता
है-दे० धीर । धैर्य धुरन्धर का भाव भी है)। सुधेनु : उत्तम धेनु । गी० १.१५.१ सुन : सुनइ । 'जो मन लाइ न सुन हरिलीलहि ।' मा० ७.१२८.३ /सुन, सुनइ, ई : आ०प्रए० (सं० शृणोति>प्रा० सुणइ)! सुनता-ती है। 'एक ___ न सुनइ एक नहिं देखा।' मा० ७.६६.६ सुनउँ, ऊँ : आउए । सुनू, सुनता हूं । 'समुझउँ सुनउँ गुनउँ नहिं भावा ।' मा०
७.११०.५; ७.११२.११ सुनख : सुन्दर नख । गी० ७.१७.८ सुनखतु : (दे० नखत) कए० । उत्तम नक्षत्र (जो शुभ मुहूर्त में उपयुक्त हो) । मा० ___ मा० १.६१.४ सुनत : वकृ०००। (१) सुनता, सुनते । (२) सुनते हुए । 'सुनत समुझत कहत
हम सब भई अति अप्रबीन ।' कृ० ३५ (३) सुनने से, में । 'सुनत मधुर परिनाम हित ।' मा० २.५० (४) सुनते ही (क्षण) । 'कहत सुनत एक हर अबिबेका।'
मा० १.१५.२ सुनति : वकृस्त्री० । श्रवण करती । गी० २.४.३ सुनतिउँ : क्रियाति०स्त्री०ए० । मैं सुनती। 'जौं तुम्ह मिलतेहु प्रथम मुनीसा । ____ सुनति सिख तुम्हारि धरि सीसा ।' मा० १.८१.१ सुनतेउँ : क्रियाति०० उए ० । मैं सुनता । सनतेउँ किमि हरि कथा सुहाई ।' मा०
७.६६.५
सुनब : भकृ०० । सुनना (होगा)। 'देखब सुनब बहुत अब आगे।' मा०
२.१८०.२
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