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तुलसी शब्द-कोश
सनाह : सनाह+ब० । सनाथ =संयुक्त । 'गावत जिन्ह के जस अमर नाग नर
सुमुखि-सनाहैं ।' गी० ७.१३.७ सनि : सं०० (सं० शनि) । (१) शनैश्चर ग्रह । (२) शनिवार। 'सनि बासर
बिश्राम। रा०प्र० ७.२.२ सनीचरी : सं०स्त्री० । शनैश्चर (प्रा० सणिच्चर) की स्थिति । 'सनीचरी है मीत
की। कवि० ७.१७७ सनीरा : (सं० सनीर)। सजल । मा० २.७०.२ सनेम, मा : (दे० नेम) । नियमों से युक्त (शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय तथा
ईश्वर प्रणिधान-नियमों से संयुक्त) । मा० २.३१०.८; ३२३.७ सनेहँ : (१) स्नेह ने । 'गवनु निठुरता निकट किय जनु धरि देह सनेहँ ।' मा०
२.२४ (२) स्नेह से, में । 'मैं सिसु प्रभु सनेहें प्रतिपाला।' मा० २.७२.३ सनेह : संपु० (सं० स्नेह>प्रा० सणेह)। (१) प्रेम । 'आवत हृदयं सनेह
बिसेकें। मा० १.२१.६ (२) चिकनाई-घी, तेल आदि । 'सुख सनेह सब दिये दसरथहि, खरि खलेल थिर-थानी।' गी० १.४.१३ (३) प्रेम+ चिकनाई।' 'रीझत राम सनेह निसोते।' मा० १.२८.१० (४) वि० (सं०.
सस्नेह>प्रा० स-णेह-दे० नेह) । सप्रेम, नेह सहित । सनेहता : संस्त्री० (सं० सस्नेहता-दे. सनेह+नेह) । स्नेहशीलता । 'एक जंग
जो सनेहता।' दो० ३१२ सनेहविषनी : वि.स्त्री. (सं० स्नेहविषयिनी) । प्रेम के विषय की, स्नेह के बारे
में होने वाली । गी० १.८१.३ । सनेहमय : स्नेहप्रचुर, स्नेहपूर्ण, स्नेहस्वरूप (दे० मय)। मा० २.११७.२ सनेहा : सनेह । सप्रेम । मा० १.८२.३ सनेही : वि० (सं० स्नेहिन्) स्नेहयुक्त । (१) प्रेमी, प्रिय । मा० २.६४.३ (२) तेल
(चिकनाई से युक्त) । 'तिली सनेही जानि ।' दो० ४०३ (प्रायः श्लिष्ट प्रयोग
देखे जाते हैं ।) सनेहु, हू : सनेह+कए । अनन्य प्रेम । ‘सील सनेहु जानत रावरो।' मा०
१.२३६ छं०; २.३.८ सन्तापनास : (सं० सन्तापनाश) दुःख-नाशक । मा० ७.१०८.१४ सन्मुख : (१) वि० (सं० सम्मुख)। अनुकूल । (२) क्रि०वि० । सामने । मा०
सन्यपात : संनिपात । असाध्य त्रिदोषज रोगविशेष । 'गुनकृत सन्यपात नहिं के ही।'
मा० ७.७१.१ (मूल अर्थ समूह है अत: अनेक भाषादि का मिश्रण अर्थ भी (अभिप्रेत है)।
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