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सुलसी शब्दकोश
1005 सचराचर : वि० (सं.)। चराचर सहित, स्थावर तथा जंगम पदार्थों सहित,
चेतन-जड़ तत्त्वों से युक्त । मा० ७.२१ सचान : सं०० (सं० शशादन>प्रा० ससान) । श्येन, बाज पक्षी । 'जनु सचान
बन झपटेउ लावा।' मा० २.२६.५ सचि : (१) पूक० (सं० संचित्य>प्रा० संचिअ>अ० संचि)। संचित कर, समेट __ कर । (२) सांचे में ढालकर । 'राखी सचि कूबरी पीठ पर ये बात बकुचौंहीं।'
कृ. ४१ सचिउ : सचिव+कए । मन्त्री । 'सचिउ सभीत सकइ नहिं पूछी।' मा० २.३८.८ सचि-पचि : (सचि+पचि) संचित कर+कष्ट उठाकर । 'करौं जो कुछ धरौं
सचि-पचि सुकृत सिला बटोरि ।' विन० १५८.४ सचिव : सचिव ने । 'सचिव संभारि राउ बैठारे ।' मा० २.४४.२ सचिव : सं०० (सं०) । मन्त्री। मा० २.३६.८ सचिवन, न्ह : सचिव+संब० । सचिवों (ने, से, के, को)। 'सचिवन अस मत
प्रभुहि सुनावा ।' मा० ६.६.४ 'सचिवन्ह सहित बिभीषन आए।' मा० ५.२४.६ सचिवहि : सचिव को । 'सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई ।' मा० २.८७.६ सची : शची । इन्द्राणी । मा० २.१४१ सच : सं००कए० (सं० सत्त्वम्>प्रा. सच्चं>अ० सच्च)। (१) उत्साह,
उल्लास । 'सिर धरि बचन चले सच पाई ।' मा० १.२८७.६ (२) सुख, तृप्ति, तुष्टि । 'बिनोदु सुनि सच पावहीं।' मा० १.६६ छं० (३) विनोद, आमोद-.
प्रमोद । 'हसहिं संभुगन अति सचु पाएँ ।' मा० १.१३४.५ सचेत, ता : वि०पु० (सं० सचेतस्) । चेतनायुक्त, सजग । मा० २.३०२ सचेतन : वि० (सं०) । चेतनायुक्त, प्राणी (विशेषतः तर्कशील मानव) । मा०
१.८५.३ सचेतू : सचेत+कए । सजग, जाग्रत्, पूरे होश-हवास के साथ । 'बैठ बात सब
सुनउँ सचेतू।' मा० २.१७६.५ सच्चरित : वि० सं०) । सदाचारी, उदार, उदात्त चरित्रयुक्त । मा० ७.२८ छं० सच्चिदानंद : सं०वि० (सं.)। ब्रह्म का यह स्वरूप-लक्षण है। (१) वह
सत्स्वरूप =अपरिणामी, निर्विकार है; (२) चित् = पूर्ण चैतन्य युक्त है। (३) आनन्द का अधिष्ठान है । तीनों का असीम घनीभूत रूप ब्रह्म । मा०
७.२५ सच्चिदानंदमय : सत्, चित तथा आनन्द गुणों से परिपूर्ण ब्रह्म । मा० २.८७ सच्चिदानंदा : सच्चिदानंद । मा० १.१४४.१ सच्चिदानंद : सच्चिदानंद+कए । एकीभूत सत्, चित् ओर आनन्द । 'सीय
रघुचंदु..'जन.. भगति सच्चिदानंदु ।' मा० २.२३६
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