________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
1004
तुलसी शब्द-कोश
सगाई : सगेपन में, घनिष्ठता (आत्मीयता) में। 'सब सुचि सरस सनेहं सगाई।'
मा० २.३१४.१ सगाई : सं० स्त्री० (सं० स्वकता>प्रा० सगाया)। सगापन, आत्मीयता । 'जहं
लगि जगत सनेह सगाई ।' मा० २.७२.५ सगुण : (१) वि० (सं०) । गुणयक्त। (ब्रह्म-सन्दर्भ में)। सत्यसंकल्पता, सत्यकामता,
सर्वज्ञता, सर्वकर्तृत्व, व्यापकता, अजरामरता, निरीहता आदि कल्याण गुणों से सम्पन्न (जो वैष्णवदर्शन की मान्यता है) स्वेच्छा से मायागुणों द्वारा रूप लेकर साकार होने वाला। मा० ३.११.११ (२) सं०० (सं० सद्गुण>प्रा०
सग्गुण) । उत्तम गुण-दे० सगुनु । सगुन : (१) सगुन । कल्याण गुण युक्त ब्रह्म राम (जो मायागुणों से परे होने के
कारण निर्गुण भी है)। 'अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी।' मा० १.२१८ (२) मायागुण ग्रहण कर साकार । 'अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा।' मा० १.२३.१ 'राम सगुन भए भगत पेमबस ।' मा० २.२१६.६ (३) सं०० (सं० शकुन> प्रा० सगुण) । मङ्गलसूचक पक्षी आदि चिन्ह । 'सगुन होहिं सुदर सकल ।'
मा० ७ दोहा २ सगुननि : सगुन+संब० । शकुनों (ने) । गी० १.४७.३ सगुनिअन्ह : सगुगिमा (शकुन-ज्ञाता) संब० । सगुन जानने वालों ने । 'कहेउ ___ सगुनिअन्ह खेत सुहाए।' मा० २.१६२.४ सगुनु : सगुन+कए० (दे० सगुण)। सद्गुण । मा० २.२३२.५ ।। सगुनोपासक : (दे० सगुण) लीलावतारी पुरुषोत्तम के आराधक; लीलारस के
भोक्त-वात्सल्य, सख्य तथा माधुर्य भावों के भक्त । 'सगुनोपासक मोच्छ न
लेहीं।' मा० ६.११२.७ सगे : वि०० ब० (सं० स्वक>प्रा० सग)। आत्मीय । “सगे सजन प्रिय लागहिं
जोसें।' मा० १.२४२.२ सगो : वि०पु०कए० (सं० स्वक:>प्रा० सगो)। आत्मीय, सगा। सोइ सगो सो ___ सखा सोइ सेवक ।' कवि० ७.३५ सगौरि : गौरी (उमा) के सहित (शिव) । हनु० १३ सघट : वि०+क्रि०वि० (सं०) । घटसहित, घड़ा लिये हुए । मा० १.३०३.४ सघन : वि० (सं०)। (१) मेघयुक्त । (२) गहन, अविरल । 'पुरइनि सघन
ओट जल ।' मा० ३.२६ क सचकित : वि० (सं०) । विस्मयाविष्ट, अकचकाये हुए। मा० २.२२६ छं० सचर : वि० । गतिशील, चलनात्मक, जंगम । 'अचर सचर चर अचर करत को।'
मा० २.२३८.८
For Private and Personal Use Only