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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 989 संवारत : वकृ०पु । सँवारता, संवारते, सँवारते हुए । 'मनहुं भानु मंडलहि सँवारत धर्यो सूत बिधि सुत बिचित्र मति ।' गी० ७.१७.३ संवारन : भ०० अव्यय । सँवारने, बनाने-सुधारने । 'हरषि चले सुर काजु संवारन ।' मा० ३.२७.६ सँवारनिहारो : वि०पु०कए । बनाने सुधारने वाला । गी० २.६७.४ सँवारब : भकृ०० । सँवारना (है, होगा, चाहिए)। 'सब बिधि तोर सँवारब ___ काजू ।' मा० १.१६६.६ सँवारहिं : आ०प्रब० । संवारते हैं, बनाते हैं, जुगाते हैं। 'बहु दाम सँवारहिं धाम ___ जती।' मा० ७.१०१.१ संवारहु : आ०मब० । सजाओ, सँवारो-बनाओ। 'नगर संवारहु चारिहुं पासा।' मा० १.२८७.४ संवारा : भकृ००। (१) बनाया, उत्तम कर लिया। 'राम बिरह करि मरन सँवारा।' मा० २.१५६.२ (२) सजाया। 'जटा मुकुट अहि मोर संवारा। मा० १.६२.१ संवारि : पूकृ० । रचकर, बनाकर, सुसज्जित करके । मा० ७.११७ संवारित : भूक०वि० (सं० समारचित) । सँवारा हुआ, गढ़ा-बनाया हुआ । 'सुतिय सुभूपति भूषिअत लोह सारित हेम ।' दो० ५०६ सवारी : भूकृ०स्त्री०ब० । सजायीं, रची-बनायीं । मा० १.३००.१ संवारी : (१) भूकृ०स्त्री० । बनायी, रचकर तैयार की। 'रूप रासि बिधि नारि संवारी ।' मा० ३.२२.६ (२) संवारि । संवार कर । 'मनहुं इंदु पर खंजरीट दोउ कछुक अरुन बिधि रचे सवारी।' कृ० २२ संवारें : क्रि०वि० । सँवारे हुए, बनाकर । 'इच्छामय नर बेष संवारें। होइहउँ प्रगट निकेत तुम्हारे।' मा० १.१५२.१ संवारे : (१) सँवारइ । बना सकता है। 'कदलि सीप चातक को कारज स्वाति बारि बिनु कोउ न संवारे ।' कृ० ५७ (२) भूकृ.पु.ब० । सजाए । 'कछु तेहिं ले निज सिरन्हि संवारे ।' मा० ६.३२.६ ।। संवारेहु : आ०-भ०+आज्ञा-मब० । तुम सँवारना। ‘रामचन्द्र कर काज सँवारेहु ।' मा० ४.२३.३ संवारो : संवारा+कए । बना लिया, सुधार लिया। 'मरन महीप सँवारो।' गी०. संहारि : (१) संघारि । हनु० २७ (२) वि०पु० (सं० संहारिन्) । विनाशकारी। 'तुलसी संभारि ताड़का-सहारि भारी भट ।' हनु० ३६ स : अव्यय (सं०) । सहित (समास में पूर्वपद) । सदोष, सदल आदि । For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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