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तुलसी शब्द-कोश
मा० ६.२६.१ (३) आ०-आज्ञा-मए । तू स्मरण कर । 'तुलसी संभारि,
ताड़का संहारि भारी भट । हनु० ३६ संभारिअ : आ०कवा०प्रए । सँभालिए, सँभाला जाय । 'समय संभारिअ आपु ।'
दो० ४३२ संभारिये : संभारिअ । (१) संभालिए, सहेजिए । 'कपि साहिबी संभारिये ।' हनु०
२० (२) स्मरण कीजिए । 'केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये । हनु० २२ संभारी : संभारि । (१) स्मरण करके । 'बार बार रघुबीर सँभारी। तरके उ
पवनतनय बल भारी।' मा० ५.१.६ (२) संभाल-सहेज कर । 'फंद गहे कर सजगह्र रह्यो सँभारी।' कृ० २२ 'बहुरि धीर धरि उठे संभारी।' मा० २.१६०.६ (३) भूकृ०स्त्री० । संभाली, व्यवस्थित की। 'तात तात बिनु बात
हमारी । केवल गुरकुल कृपा संभारी।' मा० २.३०५.५ संभार : क्रि०वि० । (१) सँभाले हुए, संभाल कर । (२) स्मरण करके । 'काहे न
बोलहु बचन संभारें ।' मा० २.३०.३ संभारे : भूकृ.पु०ब० । (१) स्मरण किये । 'बंदि पितर सुर सुकृत संभारे ।' मा.
१.२५५.७ (२) सँभाले हुए, संभाल कर । 'जे गावहिं यह चरित संभारे ।'
मा० १.३८.१ संभारेहु : आ०- भ०+आज्ञा-मब० । तुम संभालना, व्यवस्थित रखना । 'अनुज
संभारेहु सैन ।' मा० ६.६७ समार : आ.प्रए० (सं० संभालयति>प्रा० संभालइ)। सार संभाल करे,
संभालता है। 'प्रजहि सँभार राउ।' दो० ५०१ (२) याद करे या देखभाल
करे । 'जिय की परी, संभार सहन भंडार को।' कवि० ५.१२ समारो : संभारा+कए। संभाल लिया। 'पुर परिवार समारो।' गी० २.६६.३ संभाषन : सं०० (सं० संभाषण)। बातचीत, वार्तालाप । 'कियो न संभाषन
काहूँ।' विन० २७५.१ संवदरसी : संवदरसी । मा० १.३०.६ सँवराए : भूकृपुब० (सं० समारचित>प्रा. समराविअ>अ. सर्वराविअ) ।
सजवाए, सुसज्जित करवाए । 'प्रथमहिं गिरि बहु गृह सँवराए।' मा०
१.६४.७ संवरी : भूकृ०स्त्री० । बनी-बनायी। 'बिधि अब संवरी बात बिगारी।' मा०
१.२७०.७ संवार : आ०-प्रार्थना-मए० (सं० समारचय>प्रा० समार>अ० सँवार)।
बना दे । 'बिगरी सवार अंजनी कुमार ।' हनु० १५ /सँवार संवारइ : आ०ए० (सं० समारचयति>प्रा० समारइ>अ. सारइ)।
रचता-सुधारता है, सजाता है, संवारता है, बनाता (निर्माण करता) है।
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