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तुलसी शब्द-कोश
वेग : सं०पु० (सं० ) । गतिसधर्मा गुणविशेष, गति की तीव्रता, शीघ्रता । विन०
२६.३
वेताल : (दे० बेताल ) । विन० १६.२
वेद : (दे० बेद) । (१) श्रुतिग्रन्थ- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक उपनिषद् तथा वेदाङ्ग । (२) ज्ञान । विन० १२.३
वैवस्वरूप : (१) ज्ञानरूप, (२) वेदमन्त्ररूप, (३) ओंकार स्वरूप | मा०
७.१०८ ० १
वेदांग : सं०पु० (सं० ) । वेदों के छह अङ्ग जिनके द्वारा वेदों की व्याख्या संभव होती है - शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष । विन० २६.८ वेदांत : सं०पु० (सं० ) । वेदों का अन्त ( चरम ) भाग = उपनिषद् ( तथा गीता और ब्रह्मसूत्र ) । ब्रह्म ज्ञान का शास्त्र, ब्रह्मविद्या । विन० २६.८ मा० ५ श्लो० १
वैद्य : वि० (सं० ) । ज्ञेय, प्रमेय, ज्ञातव्य, जानने योग्य । मा० ५ श्लो० १
वेश : सं०पु० (सं०) । (१) स्त्रियों ( वेश्याओं की ) व्यापारिक सज्जा या शृंगार रचना | 'दिव्य देवी वेश देखि लखि निशिचरी ।' विन० ४३.५ (२) वेष | 'सुभग सर्वांग वेश ।' विन० ६१.६
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वेष : (दे० बेष) बनाव, परिधानादि-सज्जा । विन० १२.३
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वै: सर्वनाम ( वह + ब० ) । वे । 'कहाँ ते आए व हैं ।' गी० ६.१७.१
वैकु ंठ : सं०पु ं० (सं०) । (१) विष्णु ! विन० ५३.८ ( २ )
वागीश वैकुंठ स्वामी ।' विन० ५५.५
संदर्भ : सं० + वि०स्त्री० (सं० वैदर्भी) । विदर्भ देश के राजा की पुत्री = रुक्मिणी ( कृष्ण की पटरानी ) । विन० ५७.६
वैदेहि : (दे० बंदेही) । सीता । विन० ४३.६
वैनतेय : (दे० बैनतेय ) । विनता ( कश्यप - पत्नी) के पुत्र = गरुड़ । विन० ५०.१ वैभव : सं०० (सं० ) । विभूति, ऐश्वर्य, सम्पत्ति, समृद्धि । मा० ३.४ छं० ; विन०
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विष्णु लोक । 'विमल
२६.२
वैराग्य : सं०पु० (सं०) । (१) विरक्ति, विषय-निरीहता, वितृष्णा । मा०
३ श्लो० १ (२) योग के दो साधनों - अभ्यास और वैराग्य - में एकतर जो विषय-वासना के प्रति चित्तवशीकारपूर्वक अनिच्छा का नाम है । विन० १०.८ रि, री : (दे० बेरी) शत्रु । मा० ३.४ छं० ; विन० २६.३
व्यक्त : (१) वि० (सं० ) । प्रकट । 'विग्रह - व्यक्त लीलावतारी ।' विन० ४३.१
(२) सं०पु० (सं० ) । अव्यक्त = = मूल प्रकृति के परिणामरूप २३ तत्त्व — महत्, अहंकार, मन, पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच तन्मात्र ( शब्द, रूप रस, गन्ध स्पर्श), पाँच महाभूत । विन० ५४