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तुलसी शब्द-कोश
रहिए : रहिअ । 'तुलसी रहिए एहि रहनि ।' वैरा० १७ रहित : भूकृ०वि० (सं०) । हीन, वियुक्त ।' मा० १.६ रहियो : भकृ.पु०कए० । रहना (चाहिए) । 'तो लौ मातु आपु नीके रहिबो ।
गी० ५.१४.१ रहिये : रहिए। रहिहउँ : आ०भ० उए० । रहूंगा-गी। ‘रहिहउँ मुदित दिवस जिमि कोकी।' मा०.
२.६६.४ रहिहहिं : आ०भ०प्रब० । रहेंगे । 'लखनु कि रहिहहिं धाम ।' मा० २.४६ रहिहि : आ०भ०प्रए । (१) रहेगा, छूटेगा । 'जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य
बड़ तेहि कर सही।' मा० १.६५ छं० (२) मानेगा, रुकेगा। ‘सो कि रहिहि
बिनु सिव धन तोरें।' मा० १.२२३.६ रहिहु : आ० - भूकृस्त्री०+मब० । (१) तुम रही हो। 'सती सरीर रहिहु
बोरानी।' मा० १.१४१.४ (२) तुम थीं । 'रहिहु उमा कैलास ।' मा० ७.६० रहिहैं : रहिहहिं । 'जहां सजनी रजनी रहिहैं ।' कवि० २.२३ । रहिहौं : रहिहउँ । 'राम हौं कौन जतन घर रहिहौं।' गी० २.४.१ रहीं : (१) रही+ब० । थीं। 'प्रथम गए जहं रहीं भवानी।' मा० १.८९.८
(२) स्थित हुई । 'एक टक रहीं।' मा० १.३४६.८ रही : भूक०स्त्री०। (१) थी। 'गई रही देखन फुलवाई।' मा० १.२२८.७
(२) स्थित हुई । 'जोरि कर सन्मुख रही ।' मा० १.८७ छं० रहु : आo-आज्ञा-मए । तू ठहर, रुक जा। 'झुकी रानि अब रहु अरगानी। ___ मा० २.१४.७ रहें : रहने से । 'रहें नीक मोहि लागत नाहीं।' मा० २.२८४.४ रहे : भूकृ.पु०ब० । (१) बसे, ठहरे । 'कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा ।' मा०
१.४८.५ (२) थे । 'चली तहाँ जहँ रहे गिरीसा।' मा० १.५५.८ (३) स्थित हुए । 'रहे प्रबोधहि पाइ।' मा० १.७३ (४) बचे । 'दंड द्वै रहे हैं रघु-आदित
उवन के।' कवि० ६.३ रहेउ', ॐ : आ०-भूकृ००+उए० । मैं था । 'तब अति रहेउँ अचेत्त ।' मा०
१.३०; १.१८५.४ रहेउ, ऊ : भूकृ००कए । रहा। (१) स्थित रहा। 'तुम्हार पन रहेऊ ।' मा०
१.७७.६ (२) बचा । 'रहेउ एक दिन अवधि अधारा।' मा० ७.१.१ रहेसि : आ०-भूकृ.पु+मए । 'तू रहा । 'बैठि रहेसि अजगर इव पापी।'
मा० ७.१०७.७ (२) तू बच गया। 'जौं ते जिअत रहेसि सुरद्रोही।' मा० ६.८४.४
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