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सुलसी शब्द-कोश
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परियो : सं०० (सं० परिचय) कए। पहचान । 'बहतन्ह परिची पायो ।' गी०
१.१७.१ परिच्छा : सं०स्त्री० (सं० परीक्षा)। परख, जाँच । मा० १.७७ परिच्छित : (१) भूक०० (सं० परीक्षित) । परखा हुआ। पाप को दाम
परिच्छित ।' कवि० ७.१७६ (२) सं०० (सं० परीक्षित्) । कुरुवंश का एक
राजा जो जनमेजय का पिता और अभिमन्यु का पुत्र था। 'परिछन : भकृ० अव्यय (सं० प्रतीक्षितुम् >प्रा० पडिच्छिउँ>अ० पडिच्छण)।
पूजन करने, (वर का) स्वागत-सम्मानादि करने । 'परिछन चली हरहि हर
वानी।' मा० १.६६.३ परिछनि : सं०स्त्री० (सं० प्रतीक्षण>प्रा० पडिच्छण) । पूजन, वर पूजन । 'चली
मुदित परिछनि करन ।' मा० १.३१७ परिछोहि : परिछाहीं। 'तनु परिहरि परिछांहि रही है।' गी० २.६.३ 'परिछाहीं : सं०स्त्री० (सं० प्रतिच्छाया>प्रा० पडिछाही) । प्रतिच्छवि, प्रतिबिम्ब ।
'जहें तह देखहि निज परिछाहीं।' मा० ७.२८.५ परिछि : पू० (सं० प्रतीक्ष्य>प्रा० पडिक्खिअ>अ० पडिक्खि) । पूजित करके ।
'बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत ।' मा० १.३४६ परिछिन्न : वि० (सं० परिच्छिन्न)। सीमित, आवृत, परिमित । 'माया बस
परिछिन्न जड़ जीव ।' मा ० ७.१११ ख परिजन : सं०० (सं०) । (१) परिचारक वर्ग जो परिवार के परिवेश में रहता
है। 'नतरु प्रजा परिजन परिवारू ।' मा० २.३०५.६ (२) गोस्वामी जी ने
परिवार अर्थ में भी लिया है । 'हरहु दुसह आरति परिजन की।' मा० २.७१.२ परिजनन्हि : परिजन+संब० । परिजनों (को)। 'प्रभु सुभाउ परिजनन्हि सुनावा।'
मा० ७.२०.५ परिजनहि : परिजन को ! 'सासु ससुर परिजनहि पिआरी ।' मा० २.५८.८ परिताप : सं०० (सं.)। (१) तचन, तीव्र आतप (घाम)। 'भय बिषाद परिताप
घनेरे ।' मा० २.६६.५ (२) व्यापक क्लेश, यन्त्रणा । 'मिटहिं पाप परिताप
हिए तें।' मा० १.४३.६ परितापा : परिताप । मा० १.६३.६ ।। परितापी : वि०पु० (सं० परितापिन्) । अति क्लेशदायी। 'निसिचर निकर देव
परितापी ।' मा० १.१८३.३ परितापु : परिताप+कए । अद्वितीय सन्ताप । 'जितें पाप परितापु ।' दो० ४३२ परितोष : सं०० (सं.)। पूर्ण सन्तोष । 'मम परितोष बिबिध बिधि कीन्हा ।'
मा० ७.११३.६
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