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तुलसी शब्द-कोश
परावा : पराव । 'करहिं मोह बस द्रोह परावा ।' मा० ७.४०.६ परास : सं०० (सं० पलाश) । टेसू का वृक्ष, किंशुक । मा० ३.४०.६ पराहि, हीं : आ०प्रब० (सं० पलायन्ते>प्रा० पलंति>अ० पलाहिं) । भागते हैं।
'हमहि देखि मृग निकर पराहीं ।' मा० ३.३७.५ पराहि : आ०मए । तू भाग । 'पराहि जाहि पापिनी ।' हनु० २६ परि : (१) पूकृ० । पड़ कर । 'बिनय करबि परि पायें। मा० २.६८ (२) परी ।
गिर पड़ी। 'परि मुह भर महि ।' मा० २.१६३.४ (३) (ज्ञात) हो सकी। 'जरी न परि पहिचानि ।' गी० ६.६.४ (४) अव्यय (सं० परम्) । केवल । 'संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेहीं।' मा० ७.६६.७ (५) अवश्य । 'राम परायन सो
परि होई ।' मा० ७.६७.६ परिअ : आ०भावा० । पड़ा जाय, पड़ना चाहिए। 'मारतहूं पा परिअ तुम्हारें।'
मा० १.२७३.७ परिकर : सं०० (सं.)। (१) फेंटा, कमरबन्द । 'पीत बसन परिकर कटि भाथा ।'
मा० १.२१६.३ (२) परिकर बाँधना=तैयार होना । 'परिकर बाँधि उठे
अकुलाई ।' मा० १.२५०.६ परिखिहि : आ०कवा०प्रब० (सं० परीक्ष्यन्ते>प्रा० परिक्खीअंति>अ०
परिक्खिअहिं) । परखे जाते हैं, जाँच में आते हैं। 'पुरुष परिखिअहिं समय
सुभाएँ।' गी० २.२८३.६ परिखेसु : आo-भ०+आज्ञा-मए० (सं० प्रतीक्षेथाः>प्रा० पडिक्खेसु) । तू
प्रतीक्षा करना । 'परिखेसु मोहि एक पखवारा।' मा० ४.६.६ परिखेहु : आ० -- भ०+प्रार्थना-मब० (सं० प्रतीक्षेध्वम् >प्रा० पडिक्खेह>अ०
पडिक्खेहु) । तुम प्रतीक्षा करना । 'तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई ।' मा०
५.१.२ परिखौ : आ०मब० (सं० प्रतीक्षध्वम् >प्रा० पडिक्खह>अ० पडिक्खह) । प्रतीक्षा
करो । 'परिखो पिय छाँह घरीक टं ठाढ़े।' कवि० २.१२ परिगहैगो : आ० भ००प्रए० । ग्रहण करेगा। अपनायेगा । 'लटे लटपटेनि को कौन
परिगहैगो ।' विन० २५९.३ परिघ : सं०० (सं०) । लोहे का बड़ा भाला। मा० ३.१६ छं० परिचरजा : सं०स्त्री० (सं० परिचर्या) । सेवा, टहल । मा० ७.२४.६ परिचारक : सं०+वि०० (सं.)। सेवक, दास । मा० १.२८७.५ परिचारिका : सं+वि०स्त्री० (सं०) । दासी, सेविका । मा० १.३२६ छं० २ परिचेहु : आ०- भूकृ००+मब० । (१) परक गये हो, अभ्यस्त हो चुके हो।
(२) परख चुके हो। 'डहकि डहकि परिचेहु सब काहू।' मा० १.१३७.३
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