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तुलसी शब्दकोश
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मानहुं : मनहुं (उत्प्रेक्षा वाचक)। मानों। 'मानहुं मदन दुदुभी दीन्ही ।' मा०
१.२३०.२ मानहु : (१) आ०मब० । मानो । अनुभव करो । 'जनि मानहुहिये हानि गलानी।'
मा० २.१६५.६ (२) समझो। 'तात राम कहुं नर जनि मानहु ।' मा० ४.२६.१२ (३) स्वीकार करो। 'अजहुँ मानहु कहा हमारा ।' मा० १.८०.१ (४) मानते हो, समझते हो। 'हित अनहित मानहु रिपु प्रीता।' मा०
५.४०.७ (५) मानहुँ । मानों । 'पट पीत मानहु तड़ित रुचि ।' विन० ४५.२ माना : (१) मान। 'लोभ मोह मच्छर मद माना।' मा० ५.४७.१
(२) भूक०० । स्वीकृत किया (आदर दिया) । 'मैं संकर कर कहा न माना।' मा० १.५४.१ (३) अनुभव किया। 'ब्रह्म सभा हम सन दुख माना।' मा० १.६२.३ (४) स्वीकृत किया, सहमत हुआ। 'मोर मनु माना ।' मा० १.२१४.६ (५) स्वीकार्य (आदरणीय) हुआ। 'मोर बचन सबके मन माना।'
मा० १.१८६.८ मानाथ : (दे० मा) मा (लक्ष्मी) के नाथ =विष्णु । विन० ५६.६ मानि : (१) पूकृ० । मान कर । 'तेहि के बचन मानि बिस्वासा ।' मा० १.७६.६
(२) अनुभव कर । 'मानि हारि ।' मा० १.१२६ (३) महत्त्व देकर, स्वीकार कर । 'सम मानि निरादर आदरही बिचरंति ।' मा० ७.१३.६ (४) आ०
आज्ञा-मए । तू मान ले । 'कह्यो मेरो मानि ।' कृ० १७ मानिहिं : आ०कवा०प्रब० (सं० मान्यते, मन्यते>प्रा० माणीअंति, मण्णीअंति>
अ० माणीअहिं, मण्णीअहिं)। माने जाते हैं = समझे जाते हैं+आदर पाते हैं ।
'सब मानिअहिं राम के नातें।' मा० २.७४.७ मानिऐ : आ०कवा०प्रए० (सं० मान्यन्ते, मन्यन्ते>प्रा० माणीअइ, मण्णीअइ) ।
माना जाता है, माना जाय । 'केहि नाते मानिऐ मिताई।' मा० ६.२१.२ मानिक : सं०० (सं० माणिक्य>प्रा० माणिक्क)। लाल रत्नविशेष । मा०
मानिकमय : (दे० मय) माणिक्यों से रचित । गी० ७.१७.१५ ।। मानिबी : भक०स्त्री० (सं० मानयितव्या, मन्तव्या>प्रा० माणिअन्वी,
मण्णिअव्वी)। माननी =आहत करनी+समझनी (चाहिए)। निज किंकरी
करि मानिबी।' मा० १.३३६ छं. मानिबे : भकृ०० । मानने, सम्मान देने । 'जननिउ तात मानिबे लायक ।' गी०
२.३.१
मानिबो : भक०कए० । मानना (चाहिए)। 'बात चलें बात को न मानिबो
बिलगु बलि ।' कवि०७.१६
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