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तुलसी शब्द-कोश
मानप्रद : (१) मानद (सं०) । अभिमान देने वाला। 'गत मानप्रद दुखपुज ।' मा०
६.११३.६ (२) सम्मान देने वाला । म्यान निधान अमान मानप्रद ।' मा०
७.३४.५ मानप्रिय : वि० (सं.)। जिसे अभिमान या लोक सम्मान प्रिय हो। 'मुखर मान
प्रिय ग्यान गुमानी।' मा० २.१७२.६ मानब : भकृ०० । मानना (चाहिए) । 'अनुचित नाथ न मानब मोरा ।' मा०
२.२२६.७ मानबि, बी : मानिबी। पा०म० १४२ मानमद : (१) अभिमान रूपी नशा । (२) लोक सम्मान का अभिमान =
लोकेषणा । 'कोउ न मानमद तजेउ निबेही।' मा० ७.७१.१ मानस : (१) सं०० (सं.)। मन, अन्तःकरण । 'रचि चरित्र निज मानस
राखा ।' मा० १.३५.११ (२) मानस-सरोवर । 'जो भुसुडि मन-मानस हंसा।' मा० १.१४६.५ (३) रामचरितमानस । 'जस मानस जेहि बिधि भयउ ।' मा० १.३५ (४) मनरूपी मानसरोवर । 'मानस मंजु मराल ।' मा० १.१४ ग (५) रामचरितमानस रूपी मानसरोवर। तेइ सुर बर मानस अधिकारी।' मा० १.३६.२ (६) वि० । मन सम्बन्धी । 'मानस रोग कहहु समुझाई ।' मा०
७.१२१.७ मानसपूजा : देव को ध्यान में लाकर मन में ही (वाह्य सामग्री के बिना)
षोडशोपचार पूजन । मा० ७.५७.६ मानसि : आ०मए० (सं० मानयसि, मन्यसे>प्रा० माणसि, मण्णसि)। (१) तू
मानता है समझता या आदर देता है। 'मूढ परम सिख देउँ न मानसि ।' मा० ७.११२.१३ (२) तू मान, समझ, अनुभव कर । 'सुनु कपि जियँ मानसि
जनि ऊना।' मा० ४.३.७ मानसिक : (१) वि० (सं०) । मन सम्बन्धी। ध्यान-कल्पित । 'मानसिक आसन
दए।' मा० १.३२१ छं० (२) आन्तरिक । 'मुएहु न मिटगो मेरो मानसिक
पछिताउ ।' गी० २.५७.१ मानहर : वि० (सं०) । अभिमान दूर करने वाला । 'सुबाहु मथन मारीच मानहर।'
कवि० ७.११२ मानहि, हीं : (१) आप्रब० । आदर देते हैं । 'सुत मानहिं मातु पिता तब लौं।'
मा० ७.१०१.४ (२) समझते हैं, अनुभव करते हैं। 'तृप्ति न मानहिं मनु सतरूपा।' मा० १.१४८ (३) महत्त्व देते हैं। 'मानहिं नहिं बिनय निहोरा ।'
विन० १२५.३ (४) स्वीकार करते हैं । 'ते उपदेस न मानहीं।' दो० ४८५ मानहि : आ०-आज्ञा-मए० (सं० मानय, मन्यस्व>प्रा० माणहि, मण्णहि)।
तू मान=समझ+आदर दे । 'सुनि मन मानहि सीख ।' दो० ४२७
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