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तुलसी शब्द-कोशः
भृगुचरन : भृगु ऋषि का चरणचिह्न । विन० ६२.६ कहा जाता है विष्णु की
परीक्षा हेतु क्रोध करके भृगु ने वक्ष पर चरण प्रहार किया था जिसका चिह्न
भगवान् अपने उरस्थल पर सदा रखते हैं। भगतिलक : भृगुवंश में श्रेष्ठ । परशराम । कवि० १.१६ भृगुनाथ : परशुराम । मा० १.२८३ भृगुनायक : परशुराम । मा० १.२६३.१ भृगुपति : परशुराम । मा० १.२८२ भृगुपद : भगुचरन । गी० ७.१६.४ भृगुवंश मनि : भृगुकुल में श्रेष्ठ परशुराम । मा० १.२७३ भृगुबर : परशुराम । मा० १.२७६ भृगुमुख्य : भृगुवंश के मुख्य पुरुष परशुराम । हनु० ३ भृगुसुत : भृगुवंश की संतति =परशुराम । मा० १.२७३.५ भत्य : सं०पू० (सं०) । दास, परिचारक । गी० १.३८.४ भेंट : सं०स्त्री० । (१) मिलन । 'मोहि तोहि भेंट भूप दिन तीजें ।' मा० १.१६६.७.
(२) उपहार । 'हरषि भेंट हित भूप पठाई।' मा० १.३०५.३ (३) उपहारसामग्री । 'भेंट संजोवन लागे ।' मा० २.१९३.२ (४) आ.प्रए० = भेंटइ। मिलता है, भेटता है, लिपटता है । 'कनक तरुहि जनु भेंट तमाला ।' मा०
३.१०.२३ भेटत : वकृ.पुं० । मिलता-ते; आलिङ्गन करता-ते । 'ते भरतहि भेटत सनमाने।'
मा० १.२६.८ भेंटति : वकृ.स्त्री० । लिपटती । 'भेंटति अति अनुराग ।' मा० २.२४६ भेंटलगाऊ : भेंट लगाने वाला=साथियों से मिलाने वाला; राह बताने वाला।
विन० १८६.४ भेंटहिं : आ०प्रब० । मिलते हैं, लिपटते-ती हैं । मा० १.३३७.६ भेटहु : आ०मब० । मिलो। 'सबहि जिअत जेहिं भेटहु आई।' मा० २.५७.३ भेटा : भूकृ०० । लिपटाया । 'रामसखा रिषि बरबस भेंटा।' मा० २.२४३.६ भेटि : पूर्व० । लिपट कर । 'बार बार मिलि भेंटि सिय बिदा की न्हि सनमानि ।'
मा० २.२८७ भेंटी : भूक०स्त्री०ब० । लिपट गयीं, लिपट कर मिलीं। 'करि प्रनाम भेंटी सब
सासू ।' मा० २.३२०.२ भेंटी : भूक स्त्री० । मिलने द्वारा सम्मानित की । 'प्रथम राम भेंटी कैकेयी।' मा०
२.२४४.७ भेटु : आ०-आज्ञा-मए। तू लिपट कर मिल । 'अब भरि अंक भेंटु मोहि.
भाई।' मा० ६.६३.७
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