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तुलसी शब्द-कोश
भूमिपाल : भूपाल । कवि० १.१० भूमिभार : भूभार । विन० ६४.५ भूमि-सुर : भूसुर । ब्राह्मण । मा० २.१७० भूरि : वि० (सं०) । (१) अधिक, प्रचुर । 'भूतल भूरि निधान ।' मा० १.१
(२) अतिशय, अत्यन्त । 'भूरि भागभाजन ।' मा० २.७४ भरिभाग : अधिक भाग्यशाली। 'भूरिभाग दसरथ सम नाहीं।' मा० २.२.४ भूरिभागिनी : अत्यन्त भाग्यशालिनी (स्त्री)। गी० २.२२.२ भूरिभागी : अत्यन्त भाग्यशाली । 'आपु हैं अभागी, भरिभागी डाटियतु है ।' कवि०
७.६६ भूरिभोग : अत्यधिक आयाम वाला (भोग==आभोग=विस्तार); व्यापक=
शिव । कवि० ७.१५२ भूरी : भूरि । मा० १.४२.१ भूरुह : सं०० (सं०) । पृथ्वी में उगने वाला=वृक्ष । विन० १५२.१३ भूर्ज : सं०० (सं०) । भोजपत्र का वृक्ष जिसकी छाल का कागज के लिए
उपयोग होता था । मा० ७.१२१.१६ भल, भूलइ : आ०प्र० (सं० भोल=मुग्ध+मा०धा०>प्रा० भुल्ल)। भ्रान्त होता है, विस्मृत होता है, सुध बुध खोता है, मोहित हो जाता है । 'मनु बिरंचि
कर भूल ।' मा० १.२८७ भूलत : वकृ००० । भूलता-ते । हनु० २८ भूलहि : आप्रब० (अ० भुल्लहिं) । भटक जाते हैं, भ्रम में पड़ते हैं, चूक जाते हैं । ___ 'भूलहिं मूढ़ न चतुर नर ।' मा० १.१६१ ख भूलहि : आ०मए० (प्रा० भुल्लहि) । तू मोह में पड़ । 'भूलहि जनि भरम ।' विन०
१३१.३ भूला : भूकृ००। (१) भ्रान्त हुआ। 'निरखि राम मन भव॑रु न भूला।' मा०
२.५३.४ (२) विस्मृत हुआ । 'नाउँ गाउँ कर भूला रे ।' विन० १८६.५ भूलि : (१) पूकृ० । भूल कर । 'भूलि न देहिं कुमारग पाऊ।' मा० ३.५६.६
(२) भुल्लहि (अ० भुल्लि) । 'धुओं कसो धौरहर देखि तू न भूलि रे।' विन०
भूलिहु : आ० – भूकृ०स्त्री०+मब० । तुम भ्रम में पड़ गयी हो । 'भल भूलिहु खल
के बौराएं ।' मा० १.७६.७ भूलिहुं, हु, हूँ, हू : भूल कर भी । 'भयो न भूलिहू भलो।' विन० २६१.२ भूली : (१) भूलि । भूल कर । 'सो दिसि तेहिं न विलोकी भूली।' मा० १.१३५.१
(२) भूक० स्त्री० । विस्मृत हुई। 'अति अभिमान त्रास सब भूली।' मा०
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