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तुलसी शब्द-कोश
बहु : आ० - भ० + आज्ञा + मब० । तुम पूछना, तुम समझ लेना । 'बूझेहु कुसल सखा उर लाई ।' मा० ६.२१.८
बू : बूर्झाह । (१) पूछते हैं । 'एक बूझें बार-बार सीय समाचार ।' कवि० ५.३० (२) समझते हैं । 'अतिही अयाने उपखानो नहि बूझैं लोग ।' कवि० ७.१०७ : बूझइ । समझता है, समझ सकता है । 'कौन हिए की बूझे ।' गी० २.६२.३ बूझ्यो : भूकृ०पु०कए० । (१) समझ लिया । 'बुझ्यो रागु बाजी ताँति ।' विन० २३३.३ ( २ ) पूछा । 'बूझ्यो ज्यों ही, कहो, मैं हूं चेरो ।' विन० ७६.३
बूर्भ :
बूट: सं०पु० (सं० ब्युष्ट = परिणाम, फल >> प्रा० बुटु ? ) । सफल वृक्ष । 'सिद्ध साधु साधक सबै बिबेक बूट सो ।' कवि० ७.१४१
बड़ : भूकु०पु० ( प्रा० बुड्डु) । डूब गया। 'बूड़ सो सकल समाजु ।' मा० १.२६१ 'बड़, बड़ह : आ०ए० (सं० व्रडति - ड संवरने > प्रा० बुड्डुइ ) । डूबता - ती है । 'टाप न बूढ़ बेग अधिकाई ।' मा० १.२६६.७
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बूढ़त : वकृ०पु० । डूबता, डूबते, डूबते हुए, डूबते समय । 'सोकसिंधु बूड़त सबहि तुम्ह अवलंबनु दीन्ह ।' मा० २.१८४
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बूड़न : भकृ० अव्यय । डूबने । 'नागर मनु बूड़न लग्यो ।' गी० ५.२१.२ बड़हि : आप्रब० (अ० बुहुहिं) । (१) डूब जाते हैं । 'बूड़हि आनहि बोरहि जेई ।' मा० ६.३.८ (२) चाहे डूब जायें । 'गोपद जल बूड़हि घटजोनी ।' मा० २.२३२.२
बूड़ि : पूकृ० । डूबकर । 'बूड़ि न मरहु धर्म व्रत धारी ।' मा० ६.२२.६ बूडिहि : आ०भ० प्र० ( प्रा० बुडिहिइ ) । डूब जायगा । 'नाहि त बूड़िहि सब परिवारू ।' मा० २.१५४.७
६.३१.२
बूढ़: बुढ़ + कए० | कोई वृद्धजन ।
२.१६२.५
बूड़िओ : डूबी हुई भी । ' बूड़िओ तरति बिगरीओ सुधरति ।' कवि० ७.७५
बड़े : भूकृ०पु०ब० । डूब गये । 'बूड़े नृप अगनित बहु बारा ।' मा० ६.२६.३ बूड्यो : भूकृ० पु०कए० । डूब गया। 'बुड्यो मृगबारि ।' विन० ७३.२ बूढ़, ढ़ा वि०पु० (सं० वृद्ध > प्रा० बुड्ढ ) । अतिवयस्क । मा० ४.२८ ;
'बूढ़ एक कह सगुन बिचारी ।' मा०
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बूढ़े : बूढ़ा + ब० । 'कहैं बारे बूढ़े बारि बारि बार बार ही ।' कवि० ५.१५ बूढ़ो : बूढ़ा + कए० | 'बूढ़ो बड़ो प्रमानिक ब्राह्मन ।' गी० १.१७.२
बूतें : बूते पर बल पर । 'किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें ।' मा० १.२३.२
( फा० बूतः) ।
वृंद, दा: वृंद | समूह | मा० १.३४; ३.६.४