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तुलसो शब्द-कोश
बूझति : वक०स्त्री० । (१) पछती । 'बझति सिय पिय पतिहि बिसूरी।' गी०
२.१३.१ (२) समझती। 'बूझति और भांति भामिनि कत ।' गी० २.६.१ बूझब : भक०० (सं० बोद्धव्य>प्रा. बुझिअन्व)। (१) समझना, समझने
योग्य । 'एहिं समाज खल बूझब राउर ।' मा० २.२६३.५ (२) पूछना । 'बूझब
राउर सादर साई।' मा० २.२७०.८ बूझहिं : आ०प्रए० (सं० बक्ष्यन्ते>प्रा० बझंति>अ. बुज्झहिं)। समझते हैं।
पूछते हैं । 'एक एकन्ह कहं बूझहिं धाई।' मा० ७.३.८ बुझा : भूक००। (१) जाना, समझा। 'बूझा मरमु तुम्हार ।' मा० १.१०४
(२) पूछा । 'कहहु कहाँ नप तेहि तेहि बूझा ।' मा० २.१४८.२ बुझि : (१) पूकृ० । जान कर । 'बूझि मित्र अरि मध्य गति ।' मा० २.१९२
(२) पूछ कर । 'बूझि बिप्र कुल-बृद्ध गुर ।' मा० १.२८६ (३) आ० - आज्ञा या प्रार्थना-मए० (सं० बुध्यस्व>प्रा० बुज्झ>अ० बुज्झि) । तू पूछ ले। 'मेरी टेव झि हलधर कों।' कृ. ४ (४) तू समझ ले । 'तू तो बूझि मन माहिं रे।' विन० ७३.३ (५) सं०स्त्री० (सं० बुद्धि)। समझदारी। 'रीझि बूझि
बुध काहु ।' दो० २६२ बूझिअ, ऐ, य, ये : आ०कवा०प्रए० (प्रा० बुज्झीअइ)। (१) समझिए, समझा
जाय । 'कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा ।' मा० ५.४३.५ (२) पूछिए, पूछा जाय। 'बुझिअ मोहि उपाउ अब ।' मा० २.२५५ (३) समझना चाहिए । 'तुलसी
तोहि बिसेषि बूझिये एक प्रतीति प्रीति एक बलु ।' विन० २४.६ बूझिअत, यत : वकृ०कवा.पु । जाना जाता । 'अनुमान ही तें बूझियत गति ।'
विन० २६१.४ बूझिबो : भक००कए० । समझना (समझदारी) । 'जूझे ते भल बूझिबो।' दो०
बुझिहैं : आ०भ०प्रब० । पूछेगे, जानना चाहेंगे। विन० ४१.३ बुझिहै : (१) आ०भ० प्रए० । वह जानेगा। (२) मए । तू जानेगा। 'फिरि
बूझिहै को गज कौन गजारी।' कवि० ६.५ बूझी : (१) भूक०स्त्री० । समझ ली। 'बूझी बात कान्ह कुबरी की।' कृ. ४३
(२) पूछी । 'दूतन्ह मुनिबर बूझो बाता।' मा० २.२७०.६ बुझे: पूछने से जानने से ; पूछे जाते हुए । 'भरत सुभाउ सील बिनु बूझें ।' मा०
२.१६२.८ बुझे : भूकृ०पु ०ब० । पूछे । 'नप बूझे बुध सचिव समाजू ।' मा० २.२७१.५ बूझेसि : आ०-भूक००+प्रए । उसने पछा। 'बूझेसि सचिव उचित मत
कहहू ।' मा० ३.३७.८
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