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तुलसी शब्द-कोश
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"बिस्वनाथ : सं०पू० (सं० विश्वनाथ)। (१) शिव । 'बिस्वनाथ पहुंचे कैलासा ।'
मा० १.५८.६ (२) सर्वेश्वर, जगदीश्वर=परमात्मा। बिस्वनाथपुर : काशी । कवि० ७.१६६ बिस्व-बास : वि० (सं० विश्ववास) । जगत् को अपने आकार में समाहित करने
वाला=ब्रह्म (जगन्निवास) । मा० १.१४६.८ बिस्वबिलोचन : (१) विश्व का द्रष्टा =सर्वज्ञ (२) विश्व को दर्शनशक्ति देने
वाला=ज्ञानप्रेरक= अन्तर्यामी । विन० १४६.४ बिस्वमोहनी : (सं० विश्वमोहनी)। (१) ब्रह्म की आदि शक्ति महामाया जो
व्यामोहिका माया के रूप से जीवों को भ्रान्त कर संसारी बनाती है-उसकी आवरण और विक्षेप दो शक्तियां हैं। (२) नारद मोह के प्रसंग में शीलनिधि
की कन्या जो माया का ही अवतार थी। मा० १.१३०.५ 'बिस्वरूप : (सं० विश्वरूप)। जगत् के रूप में प्रकट परमेश्वर-जड़चेतन प्रपञ्च
जिसका शरीर है =विराट्, ब्रह्माण्ड का उपादान भूत ब्रह्म । मा० १.१३.४ 'बिस्वामित्र : सं०० (सं० विश्वामित्र) । मुनिविशेष । मा० १.२०६.२ बिस्वामित्रु : बिस्वामित्र+कए । अकेले विश्वामित्र मुनि । 'बिस्वामित्र मिले पुनि ____ आई ।' मा० १.२६६.६ 'विस्वास, सा : सं०० (सं० विश्वास) । आश्वस्त मनोदशा, निष्ठा, आस्था । मा०
१.२.११ (२) दृढ निश्चय । बिस्वासो : वि०पू० (सं० विश्वासिन्) । आस्थावान् । विन० २२.३ बिस्वासु, सू : बिस्वास+कए । अनन्य विश्वास । मा० ६.१४ 'सब द्विज उठे
मानि बिस्वासू ।' मा० १.१७३.७ बिस्वेस : सं०० (सं० विश्वेश) विस्वनाथ । (१) सर्वेश्वर, परमात्मा । (२) शिव ।
मा० ७.१२६ बिस्वेसु : बिस्वेस+कए । विश्व का एकमात्र स्वामी । कवि० ७.१५१ बिहँगनि : बिहंग+संब० । पक्षियों (को) । 'ब्याध ज्यो बिषय बिहँगनि बझावौं ।'
विन० २०८.२ बिहँसत : बिहसत । मा० ७.८०.२ बिहँसहि : बिहसहिं । बिहंसा : बिहसा । मा० ६.१६.१ बिहंसि : बिहसि । मा० ४.७.२२ बिहंसी : बिहसी। बिहँसे : बिहसे । मा० ६.३८ ख बिहंग : सं०० (सं० विहंग) । आकाशगामी=पक्षी । मा० १.२१२ बिहंगपति : गरुड़ पक्षी । मा० ७.५५
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