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तुलसी शब्द-काश
बनी : भूक०स्त्री०। (१) सजी, रचो। 'जस दूलहु तसि बनी बराता।' मा०
१.६४.१ (२) सम्पन्न हुई, निभ गई । 'बनी तुलसी अनाथ की।' विन०
२७६.३ बनु : बन+कए। मा० २.५५ बने : भूकृ००ब० । सजे, शृगार किये हुए । 'बने बराती बरनि न जाहीं ।' मा०
१.३४८.४ बन : बनइ। (१) बनता है, बन सकता है । 'सेन बरनत नहिं बने ।' मा०
५.३ छं० १ (२) बन जाय । 'क्यों न बिभीषन की बने ।' गी० ५.४०.? बनेगी : आ०भ०स्त्री०प्रए० । ठीक रहेगी, बात उपयुक्त होगी । 'सहेहीं बनेगी सब ।' ___ कवि० ७.१३५ बनैहौं : आ०भ० उए ० । बनाऊँगा-गी (सजाऊँगी)। 'बाल बिभूषन बसन मनोहर
अंगनि बिरचि बनहौं ।' गी० १.८.२ बन्यो : भूकृ००कए। रचा गया, सज्जित हुआ । फबा । 'पहुंची करनि, कंठ
कठुला बन्यो।' गी० १.३२.२ बपत : वकृ.पु० (सं० वपत्) । बोता-ते, बोता हुआ, बोते हुए । 'बबुर बीज
बपत ।' विन० १३०.२ बपु : सं०० (सं० वपुष) । शरीर । मा० १.८७ बपुरा : वि.पु. (सं० वत्र =धूलि>प्रा. वप्पुडा-संभवतः 'वप्रपुट' =धूल की
पुड़िआ के अर्थ में मूलतः रहा होगा) । बेचारा, नगण्य , क्षुद्र । 'सिव बिरंचि
कहुं मोहइ, को है बपुरा आन ।' मा० ७.६२ ख बपुरे : बपुर+ब० (प्रा० बप्पुडया) । बेचारे, तुच्छ । 'कहा कीट बपुरे नर नारी।'
मा० २.२६.३ बपुष : बपु। मा०६६८.५ बबा : सं०० (फा० बाबा)। पिता। 'ज्यों बालक माय-बबा के।' विन
२२५.४ बबुर : सं०पु० (सं० बबुर>प्रा० बब्बुर) । बबूल (वृक्षविशेष जो कांटेदार होता
है)। कवि० ७.६६ बबूर : बबुर । मा० १.६६ छं० बबै : (दे० बबा) पिता ने । 'बबै ब्याह की बात चलाई ।' कृ० १३ बमत : वकृ०० । वमन करते हुए, उगलते हुए । 'रुधिर बमत धरनी ढनमनी ।'
मा० ५.४.४ बमन : सं०पू० (सं० वमन)। उगाल, बान्त । 'तजत बमन जिमि जन बड़भागी।'
मा० २.३२४.८
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