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तुलसी शब्द-कोश
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बनावहि : आ०-आज्ञा-मए । तू बना। रचि रचि हार बनावहि ।' विन..
२३७.४ बनावा : भूक०० । बनाया । (१) किया। निश्चित किया । 'करत बिचारु न
बनत बनावा ।' मा० १.४६.२ (२) सजाया, सँवारा । 'जटा मुकुट निज सीस बनावा।' मा० २.१५१.२ (३) निष्पन्न किया। 'आपु गई जहँ पाक बनावा।' मा० १.२०१.३ (४) रचा, निर्मित किया। 'हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।' मा० ५.५.८ (५) बनाव । साजबाज, शृंगार । ‘संग नारि बहु किएँ बनावा।'
मा० ५.६.२ बनावै : (१) बनावइ । 'बिगरी बनाव कृपानिधि की कृपा नई।' विन० २५२.२
(२) भक० अव्यय =बनावन । बनाने । 'पटतर जोग बनावै लागा।' मा०
२.१२०.५ बनि : (१) पूक० । बनकर, सज्जित होकर, घटित होकर । 'जद्यपि ताको सो
मारग प्रिय जाहि जहाँ बनि आई ।' क० ५१ (२) सं०स्त्री० (सं० वणिजवणिज्या>प्रा० वणि)। व्यवसाय, वाणिज्य, पारिश्रमिक । 'बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी। आजु दीन्हि बिधि बनि भलि भूरी।' मा० २.१०२.६ (३) बनी। सजी हुई । 'चहुं पास बनि गजमनी ।' गी० ७.५.६ (४) मजदूरी।
'खेती बनि बिद्या बनिज ।' दो० १८४ बनिक : सं०प० (सं० वणिज - वणिक) । बनिया, व्यवसायी। मा० १.३.१२ बनिज : सं०स्त्री० (सं० वणिज्या>प्रा० वणिज्जा>अ० वणिज्ज)। व्यवसाय,
दुकानदारी आदि । दो० १८४ बनितन, न्हि : बनिता+संब० । वनिताओं, स्त्रियों । 'तुलसिदास ब्रज बनितन को
ब्रत समरथ को करि जतन निवारे ।' कृ० ५७ बनिता : सं०स्त्री० (सं० वनिता) । सुसज्जित स्त्री, पत्नी, प्रेयसी, सुन्दरी। मा०.
२.७६ बनिहिं : बनिहैं । बनेंगे, योग्य होंगे। 'इंद्रिय-संभव दुख हरे बनिहिं प्रभु तोरे ।'
विन० ११६.५ बनिहि : आ० म०प्रए० । बनेगा-गी। संगत होगा-गी। 'आन उपाय बनिहि नहिं
बाता ।' मा० २.८५.८ बनिहैं : आ० भ० प्रब० । बनेंगे, उपयुक्त होंगे। 'अघ...अपनायेहि पर बनिहैं ।'
विन० ६५.३ बनिहै : बनिहि । 'बनिहै बात उपाय न औरे ।' गी० २.११.२ बनी : भक स्त्रीब० । सची, रची। 'पदकंजनि मंजु बनीं पनहीं।' कवि० १.६
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