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तुलसी शब्द-कोश
बढ़ाउ : आ०-आज्ञा-मए० (सं० वर्धयस्व>प्रा. वड्ढाव>अ० वड्ढा)।
तू विकसित कर, बढ़ा । 'उर अनुराग बढ़ाउ ।' विन० १००.१० बढ़ाए : भूक००ब० । (१) परिवधित किये । 'बिधि बिषम बिषाद बढ़ाए।'
गी० २.८८.३ (२) बढ़ाए हुए। 'प्रमुदित प्रजा प्रमोद बढ़ाए।' गी० ६.२२.६ बढ़ाय : बढ़ाउ (अ० वड्ढावि) । तू बढ़ा । 'सीय राम पद तुलसी प्रेम बढ़ाय।'
बर० ४५ बढ़ायो : भूक पु०कए० । बढ़ाया, बड़ा किया। 'बलु आपनो बढ़ायो है ।' कवि०
'बढ़ाव, बढ़ावइ : आ०प्रए० (सं० वर्धयति>प्रा० वड्ढाव /बढ़+प्रेरणा) ।
बढ़ाता-ती है । 'एकहिं एक बढ़ावइ करषा।' मा० २.१६१.२ बढ़ावत : वकृ०० (सं० वर्धयत् >प्रा० वड्ढावंत)। बढ़ाता-ते । 'हरष बढ़ावत'
चंद ।' दो० ३७४ बढावन : (१) वि.पु. । बढ़ाने वाला। 'बिमल बिबेक बिराग बढ़ावन ।' मा०
१.४३.५ (२) सं० । बढ़ाना-ने । 'महि महि धरनि लखन कह बलहि
बढ़ावन ।' जा०म० १८ बढ़ावनिहारी : वि० स्त्री० । बढ़ाने वाली । मा० १.१२६.३ बढ़ावनो : सं०पु०कए । बढ़ाना ! 'बिषम बली सों बादि बैर को बढ़ावनो।'
कवि० ५.६ बढ़ावहिं : आ०प्रब० (सं० वर्धयन्ति >प्रा० वड्ढावंति>अ० वड्ढावहि)। बढ़ाते
हैं । 'नाहिं नाना रंग तरंग बढ़ावहिं ।' पा०म० ६३ बढ़ावहि : आ०मए० (सं० वर्धयसि>प्रा० वड्ढावसि>अ० वड्ढावहि) । तू
बढ़ाता है । 'बथा कत रटि रटि राग बढ़ावहि ।' दिन० २३७.१ बढ़ावा : भूकृ०० । बढ़ाया। 'देखि मोहि जिय भेद बढ़ावा ।' मा० ४.६.१० बढ़ावै : बढ़ावइ । बढ़ाए, बढ़ा सकता है। 'को करि तर्क बढ़ावै साखा।' मा०
१.५२.७ बढ़ावौं : आ० उए । बढ़ाऊँ, बढ़ाता हूं। 'सब सों बैर बढ़ावौं ।' विन० १४२८ बढ़ि : (१) पू० । बढ़ कर । 'कपि बढ़ि लाग अकास ।' मा० ५.२५ (२) बढ़ी। ____ 'साँची बिरुदावली न बढि कही गई है ।' विन० १८०.६ बढ़िआरि : सं०स्त्री० (सं० वृद्धि+कारि>प्रा० वढिआरि)। बाढ़, सैलाब ।
'सुरसरिहू बढ़िआरि ।' दो० ४६८ बढ़ी : भूक०स्त्री० । विकसित हुई । 'बढ़ी परस्पर प्रीति ।' मा० १.३३७.७ .. बढ़ें : बढ़ने से, बढ़ने पर । 'सागर ज्यों बल बारि बढ़ें।' कवि० ६.६
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