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तुलसी शब्द-कोश बकुल : सं०० (सं.)। (१) मौलसिरी वृक्ष । मा० १.३४४.७ (२) पुष्पमञ्जरी
=बोर। बक्यो : भूकृ००कए० (सं० वल्कितम >प्रा० वक्कि>अ० वक्किय उ)। बकवास
करता रहा । 'बक्यो आउ बाउ मैं ।' विन० २६१.२ बक्र : (१) वि० (सं० वक्र) । टेढ़ा, टेढ़ी। 'बक चंद्रमहि असइ न राहू ।' मा०
१.२८१.६ ‘चलइ जोंक जल बक्रगति ।' मा० २.४२ (२) कथन से विपरीत अर्थ का.की। 'बक्र उक्ति धनु बचन सर।' मा० ६.२३ ङ (३) प्रतिकूल
आचरण वाला । 'श्रीमद बक्र न कीन्ह केहि ।' मा० ७.७० ख बकउक्ति : सं०स्त्री० (सं० वक्रोक्ति)। एक कथन शैली (अलंकार) जिसमें उल्टा
अर्थ निकलता है-ऐसी उक्ति जिसमें काकु या श्लेष हो और अन्य अथं किया
जा सके । मा० ६.२३ ङ बखान : सं०० (सं० व्याख्यान >प्रा. वक्खाण) । गुणविवेचन, स्तुतिवर्णन ।
'नर कर करसि बखान ।' मा० ६.२५ 'बखान बखाइ, ई : बखान+प्रए । बखान करता है, व्याख्यापूर्वक समझाता
कहता है; गुण वर्णन करता है । 'कौन बेद बखानई ।' विन० १३५२ बखानउँ : बखान+उए । बखानता हूं, वर्णन करता हूं। 'अस तब रूप बखानउँ
जानउँ ।' मा० ३.१३.३ बखानत : वकृ०० । वर्णन करता-करते । 'न बने बखानत ।' जा०म० १३ बखानहि, हीं : आ०प्रब० । बखानते हैं विवृत करते हैं, व्याख्यापूर्वक समझाते
हैं । 'बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं ।' मा० ७.२६.२ बखानहु : आ०मब० । बखानो, व्याख्या कर समझाओ। 'तिन्ह कर सहज सुभाव
बखानहु ।' मा० ७.१२१.५ बखाना : (१) बखान । 'कतहुं राम गुन करहिं बखाना ।' मा० १.७६.१
(२) बखानइ। 'तुम्ह त्रिभुवन गुर बेद बखाना।' मा० १.१११.५ (३) भूकृ.पुं० । वर्णन किया, व्याख्या करके समझाया । 'राम जासु जस आपु
बखाना।' मा० १.१७.१० बखानि : (१) पूकृ० । वर्णन कर। 'दसा न जाइ बखानि ।' मा० २.११०
(२) आ०-आज्ञा-मए । तू बखान कर । 'नवल नंदकुमार के ब्रज सगुन
सुजस बखानि ।' कृ० ५२ बखानिय : (१) बखानि । 'गोरी नैहर केहि बिधि कहहु बखानिय ।' पा०म० ८८
(२) आ०कवा०प्रए० । बखाना जाता है । 'देस सुहावन पावन बेद बखानिय ।'
जा०म०४ बखानिये : बखानिय । बखाना जाता है । कवि० ७.१६८
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