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तुलसी शब्दकोश
फूलत : वकृ००। (१) पुष्प सम्पन्न होता-होते । 'फलत फलत सु पल्लवत ।'
मा० १.२१२ (२) फूलते समय । 'फूलत फलत भयउ बिधि बामा।' मा० २.५९.४ (३) सूजता, विकारवश स्थूल होता । 'पेट न फलत बिनु कहें।' दो०
४३७ फूलन : भकृ० अव्यय । पुष्प सम्पन्न होने । 'उकठे बिटप लागे फूलन फरन ।' विन
२५७.२ फूलनि : फूल+संब० । फूलों । 'उर फूलनि के हार हैं ।' कवि० २.१४ फलाह : आ०प्रब० (सं० फुल्लन्ति>अ० फुल्लहिं) । पुष्प सम्पन्न होते हैं । 'फूलहि ___फलहिं बिटप बिधि नाना।' मा० २.१३७.६ फला : (१) फूल । 'सोइ फल सिधि सब साधन फूला।' मा० १.३.८
(२) भूक०० (सं० फुल्ल)। विकसित, पुष्पित । 'मोर मनोरथ सुरतरु
फूला।' मा० २.२६.८ फूलि : पूक० (अ० फुल्लि) । पुष्प सम्पन्न होकर । मा० २.३११.७ फूली : फूली+ब० । खिल उठीं, उल्लसित हुई। 'निरखत मातु मुदित मन फूलीं।' ___गी० १.३१.५ फूली : (१) भूक०स्त्री० । पुष्प सम्पन्न हुई, विकसित हुई । 'ज्यों कलप-बेलि सकेलि
सुकृत सुफूल फूली सुख कली।' गी० ३.१७.१ (२) फूलि । 'जेहिं दिसि बैठे
नारद फूली।' मा० १.१३५.१ फूलें : फूले हुए' से । 'फूलें कास सकल महि छाई ।' मा० ४.१६.२ फूले : भूकृ००ब० । (१) पुष्प सम्पन्न हुए । 'बिबिध भाँति फूले तरु नाना।'
मा० ३.३८.३ (२) हर्षोत्फुल्ल हुए । 'परमानंद प्रेम सुख फूले ।' मा०
१.१६६.५ फूल : फूलहिं । विकास पाते हैं (उन्नत होते हैं) । ‘फल फूल फैले खल...।' कवि०
७.१७१ फल : फूलइ । खिले, खिल सकता है । 'हृदय कमल फूल नहीं बिन रबिकुल रबि
राम ।' वैरा० २ फेट : सं०स्त्री० (सं० स्फेट= आवरण)। कमरबंद, फेंटा । 'धनी गही ज्यों फेंट ।'
दो० २०७ ककरहिं : आ०प्रब० (सं० फेत्कुर्वन्ति>प्रा० फेक्करंति>अ० फेक्करहिं) । फेकरते
हैं फे-फे ध्वनि करते हैं । 'फेकरहिं स्वान सियार ।' रा०प्र० ५.६.३ फेकरि : पूक० । फे-फे ध्वनि करके । 'फेकरि फेकरि फेरु फारि फारि पेट खात ।' ___ कवि० ६.४६ फेन : सं०० (सं०)। मा० २.६१.१
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