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तुलसी शब्द-कोश
फुलाई : पूकृ० । फुला कर । 'बचन कहहिं सब गाल फुलाई ।' मा० ६.६.६ फुलाउब : भकृ०पुं० । फुलाना ( स्थूल करना ) । 'हँ सब ठठाइ फुलाउब गाला ।'
मा० २.३५.५
फुलाए : भूक०पु०ब० 1 पुलक - पल्लवित किये। 'हरषित खगपति पंख फुलाए ।
मा० ७.६३.१
फुलावौं : आ०उए० । प्रफुल्लित करूँ, हर्षोल्लसित करूँ । 'तुलसी भनिति भली भामिनि उर सो पहिराइ फुलावों ।' गी० १.१८.३
'फूँक : फुंकार या फूत्कार ध्वनि + उससे निकलने वाली साँस । 'मसक फूंक बरु मेरु उड़ाई ।' मा० २.२३२.३
फूंकि : पूकृ० । फूंक मार कर । 'चहत उड़ावन फूंकि पहारू ।' मा० १.२७३.२ कूट : भूक०पु० (सं० स्फुटित > प्रा० फुट्ट ) । विचलित हो गया, फूटा । 'फूट
कपारू ।' मा० २.१६३.५
'फूट, फूटइ : (सं० स्फुटति > प्रा० फुट्टइ) आ०प्र० । फूटता है, फूट जाय ।
'अंजन कहा आँखि जेंहि फूट ।' विन० १७४.३
फूटहि : आ०प्र० (अ० फुट्टहि ) । फूटते हैं । 'जनु फूटहिं दधि कुंड ।' मा० ६.४४ फूटहुं : आ० - कामना - प्रब० । फूट जायँ । 'फूटहुं नयन ।' दो० ४१ फूटि : पूकृ० (अ० फुट्टि) । फूटकर । 'महाबृष्टि चलि फूटि किआरों ।' मा०
४.१५.७
फूटिहि : आ०भ० प्र० (सं० स्फुटिष्यति > प्रा० फुट्टिहिइ ) । फूटेगा-गी । 'राज समाज नाक अस फूटहि ।' जा०मं० ६१
कूटीं : भूकृ० स्त्री०ब० । छिन्न-भिन्न हो गयीं । 'रहे न सरीर हड़ावरि फूटीं ।' कवि० ६.५१
फूटी : भूकृ० स्त्री० (सं० स्फुटिता > प्रा० फुट्टी) । (१) विदीर्ण, शीर्ण | 'लहइ न फूटी कौड़िहू ।' दो० १०८ (२) फूटी आँख | 'लोक रीति फूटी सहहि आंजी सहद न कोइ ।' दो० ४२३
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फूटे : भूक०पु०ब० । मा० ६.२५.६
फूटेहु : फूटे हुए भी । 'फूटेहु बिलोचन पीर होत ।' विन० २७१.४ फूट : फूटइ ।
फूरति : वकृ०स्त्री० । स्फुरित होती, स्पन्दित होती । 'पावन- हृदय जेहि उर फूरति । कृ० २८
फूल : सं०पु० (सं० फुल्ल - पुष्प – प्राकृत में 'फुल्ल' ही अति प्रचलित ) । मा० १.३७.१४
फूल, फूलइ : (सं० फुल्लति - फुल्ल विकासे > प्रा० फुल्लइ ) आ०प्र० । पुष्प सम्पन्न होता है । 'फूलइ फरइ न बेत ।' मा० ६.१६ ख