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तुलसी शब्द-कोश
इष्टदेवन्ह : इष्टदेव+संब० । इष्टदेवों (के प्रति)। 'चले इष्टदेवन्ह सिर नाई।'
मा० १.२५०.६ इसान : सं० पु. (सं० ईशान) । शिव । पा०म० १३ छं० इसानु : इसान+कए । 'दोष निधान इसानु सत्य सब भाषेउ ।' वा०म० ६४ । इह : अव्यय (सं.)। यहां, इस लोक में, इस स्थान पर, इस जन्म में । मा०
७.१०८.१३ वि० ५६ ६ (२) सर्व० । यह इहइ : यही, एकमात्र यह । 'इहइलाभ संकर जाना।' मा० १.२१ छं० इहलोक : इस जीवन का संसार, यह जल और तत्सम्बन्धी विश्व, वर्तमान जीवन
और उसके विषय । मा० ७.१०८.१३ इहाँ : क्रि०वि० अव्यय (सं० इह <प्रा० इहं) । यहाँ । मा० १.५२.५ इहै : इहइ । यही । 'कारन इहै गह्यो गिरिजाबर ।' कृ० ३१
इंधनु : इंधन+कए । 'ईधनु पात किरात मिताई। मा० २.२५१.२ ई: इ। भी। तनोई मा० २.३१६.११ आदि ईछा : इच्छा । मा० ६.५०.७ ईड्य : वि० (सं०) । स्तुत्य । मा० ६ श्लोक २ ईति : सं० स्त्री० (सं०) । (१) महामारी (२) अकाल दुर्मिक्ष (३) अतिवृष्टि
(४) शलभ =टिड्डीदल (५) चूहों का लगना (६) खेती में शुक आदि पक्षियों का गिरना (७) विदेशी आक्रमण (८) संक्रामक रोग (8) प्रवास (१०) राष्ट्र
में गृह-युद्ध । मा० २.२३५.३ 'ईति भीति जस पाकत साली। मा० २.२५३.१ ईश : सं०+वि.पु.० (सं०) । (१) स्वामी । मा० ६ श्लोक १ (२) शिव । मा०
७.१०८.१६ ईशान : सं० पू० (सं.)। शिव । मा० ७.१०८१ ईश्वर : (सं०) । दे० ईस्वर । मा० १ श्लोक २ ईषना : सं०स्त्री० (सं० ईषणा, एषणा) (१) लालसा, खोज, विषयों की अभ्यर्थना।
(२) कामभोग, धन और यश की कामना । 'सुत बित लोक ईषना तीनी।' मा० ७.७१.६