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________________ तुलसी शब्द-कोश आदरही : आदर को । 'सम मानि निरादर आदरही ।' मा० ७.१४ छं० आदरहुं : आ० - संभावना - प्रब। सम्मान दें, आदर करें। 'के निदरहुं कैं आदरहुं ।' दो० ३८१ 68 आदरिअ : आ०कवा०प्र० । आदर दिया जाय, समान्य करना चाहिए | आदरिअ करिअ हित मानी ।' मा० २.१७६.२ आदरियत: वकृ०पु० - कवा० । आदर पाता पाने । विन० १८३.२ आदरिये : आदरिअ । 'तिनह न आदरिये ।' विन० १८६४ श्रादरी : भूकृ० स्त्री० । संमानित की । 'भवहरनि भवित न आदरी ।' मा० ७.१३ छं० ३ आदरु: आदर+कए । अद्वितीय सम्मान । 'जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा ।" मा० १.१०७.३ आदरे : भू० कृ०पु० बहु० । सम्मानित किये । गी० ६.२२.६ आदरेण : (सं० पद) आदर से । मा० ३.४ छं० 1 आदरेहु : आ० – भू० कृ०पु० + मब० । तुमने सम्मानित किया - किये । 'नहि आदरेहु भगति की नाई ।' मा० ७.११५.१० आदरी : आ० - आज्ञा - प्र० । ( वह) आदर करे, सम्मान दे। 'सोइ आदरी आस जाके जिय बारि बिलोवत फीकी ।' कृ० ४३ प्रादर् यो : भू० कृ०पु०कए० । सम्मानित किया । 'तू जो हम आदर यो सो तो नव कमल की कानि ।' कृ० ५२ आदि : (१) वि० (सं० ) । प्राथमिक | 'आदि सृष्टि उपजी जब ।' मा० १.१६२ (२) मुख्य, प्रथम ( समासान्त में ) इत्यादि । 'व्यास आदि कबि पुंगव नाना । मा० १.१४.२ (३) सं०पु० | आरम्भ । 'आदि अंत कोउ जासु न पावा ।" मा० १.११८.४ (४) क्रि०वि० । पहले, सर्वप्रथम । 'आदि सारदा गनपति गौरि मनाइय हो ।' रा०न० १ आदिक : आदि । इत्यादि । मा० ६.६२.१२ aferfar : बाल्मीकि मुनि जिन अषि रामायण ग्रन्थ आदि - काव्य माना गया है । मा० १.१६.५ आदित: सं०पु० (सं० आदित्य ) । सूर्य । 'दंड द्वै रहै हैं रघु आदित उवन के । कवि० ६.३ आदिदेव : (१) मुख्य देवता, (२) प्रथम पूज्य देवता = गणेश जी, (३) सूर्य, (४) ब्रह्म, (५) शिव ( ६ ) विष्णु । ' आदिदेव प्रभु दीनदयाला।' मा० १४२.६ (यों आदिदेव दैत्य - पर्याय है ।)
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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