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तुलसी शब्द-कोश
प्रसन : सं. पुं० (१) (सं०) । फेंकने का साधन । शरासन, विशिखासन, बाणासन
आदि । (२) (सं० अशन)। भोजन । 'बचन सुधासम असन अहि।' मा० १.१६१ ख (३) भोजन करने की क्रिया। 'इहाँ उचित नहिं असल अनाजू ।'
मा० २.२७८.७ असनि : सं० स्त्री० (सं० अशनि) । वज्र । 'ओडिअहिं हाथ असनिहु के घाए।'
मा० २.३०६.८ प्रसनु : असन+कए। भोजन, एकमात्र खाद्य सामग्री । 'असनु कंद फल मूल ।'
मा० २.६२ असबाबु : सं० पुं० कए (अरबी-असबाब=सबब+बहु० जिसका अर्थ उपकरण,
उपादान जैसा होता है; बन्धन, रस्सी, कारण जैसे अर्थ भी उर्दू में चलते हैं। हिन्दी में सामग्री' के अर्थ में आता है, विशेषतः घरेलू सामग्री)। सामान।
'सबु असबाबु डाढ़ो, मैं न काढ़ो नै न काढ़ो' कवि० ५१२ . असम : वि० (सं.)। विषम (संख्या, मात्रा आदि में) । दुर्गम, अज्ञेय । 'असम सम
सीतल सदा।' मा० ३.३२ छं०४ असमंजस : सं०+वि० पुं० (सं.)। (१) असंगत, अनर्ह, अयोग्य । 'राम सुकीरति
भनिति भदेसा । असमंजस ।' मा० १.१४.१० (२) अनिश्चय, कर्तव्यनिर्णय का अभाव । 'बना आइ असमंजस आजू ।' मा० १.१६७.५ (३) संशय, व्याघातपूर्ण स्थिति, मनोभीष्टपूर्ति में सन्देह । 'करों काह असमंजस जी के।' मा० २.२६३.५ (४) अव्यवस्थित, उखड़ा-सा, बेठीक । 'सबु असमंजस अहइ सयानी।' मा० २.२२३.३ (५) ग्रहण-त्याग में अनिश्चित । ‘समुझि अवधि असमंजस दोऊ।' मा० २.२७१.६ (६) उक्त सभी अर्थों का समाहार । 'तुम्ह
बिनु असमंजस समन को समरथ एहि कालो।' मा० २.२६१ असमंजसु : असमंजस+कए । 'असमंजसु बड़'-रा० प्र० ६.७ १ असमय : प्रतिकूल समय, अनवसर, विपरीत अवसर; संकट काल । 'आपन अति
असमय अनुमानी ।' मा० १.१५७.३ असमसर : सं० पु० (सं० असमशर=विषमशर) विषम संख्यक बाणों वाला =
पञ्चबाण =कामदेव । 'सकल असमसर-कला प्रबीना।' मा० १.१२६.४
(असमसर-कला=कामकला, संभोग कौशल ।) असमाकं : सर्व० (सं० अस्माकम्) । हमारा । विन० ५१.८ असयानी : (सयानी का विलोम) चातुरी से रहित निश्छल, वाक्कौशल की लाग
लपेट से शन्य । 'बिबिध सनेह सानी बानी असयानी सुनि ।' कवि० २.१०।। असरन : वि० (सं० अशरण) । शरणहीन, निराश्रय, अनाथ, रक्षकहीन । मा०
७.१८३ असवार, रा : वि०+सं० पुं० (सं० अश्ववार>प्रा० असवार, आसवार)।