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तुलसी शब्द-कोश अवसेषित : भू०कृ० वि० (सं० अवशेषित)। बचाया हुआ। 'सिर अवसेषित
राहु ।' मा० १.१७० अवस्था : सं० स्त्री० (सं.)। दशा, स्थिति । जीव की चार दशाएँ-जाग्रत्,
स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय। 'जनु जीव अरु चारिउ अवस्था ।' मा० १.३२५ छं०.
'तीनि अवस्था ''तूल तुरीय... । मा० ७.११७ ग अवस्य : क्रि० वि० (सं० अवश्य) =अवसि । मा० ७.१०६.६ अवां : सं० पु० (सं० आमपाक>प्रा० आमवाअ>अ० आवाअ>आवा) ।
आम=कच्चे बर्तन पकाने की कुमार की भट्टी जिसका धुवाँ बाहर नहीं आता,
भीतर बर्तन पकते रहते हैं । मा० १.५८.४ अवास : सं० ० (सं० आवास) । घर, निवास स्थान । पा० मं० १४८ अवासू : अबासू । मा० २.१७६.६ अविगत : अबिगत । सर्वव्यापी होने से सर्वगत, सर्वगत, सर्वव्याप्त । मा०
१.१८६ छं. प्रविछिन्न : अबिछीन । विन० ४६.३ अविद्या पञ्च : दे अबिद्या। अव्यक्त : अब्यक्त । ब्रह्म, जीव तथा प्रकृति । अव्यय : सं०+वि० (सं.)। व्यवहीन, निर्विकार, अविकृत ब्रह्मतत्त्व (दे०
अबिकारी)। मा० ४ श्लोक २ अशुभ : (दे० असुभ) । अहित, अमङ्गल, पाप । विन० १०.५ अशेष : वि० (सं०) । सम्पूर्ण (जिससे पृथक् कुछ शेष न हो)। निविशेष
(निरपेक्ष)। मा० १ श्लोक ६ अष्टक : सं० पुं० (सं.)। आठ का समवाय । जैसे-रुद्राष्टक= रुद्रस्तुति के
आठ श्लोकों का समूह । मा० ७.१०८.६ अष्टासिद्धि : योग की आठ सिद्धियाँ-(१) अणिमा=अणु रूप ग्रहण की शक्ति
(२) महिमा=अति विशाल रूप लेने की शक्ति (३) लघिम= अत्यन्त हल्का बनने की शक्ति (४) गरिमा =बहुत भारी होने की शक्ति (५) प्राप्ति = मनचाही गति या पहुंच (६) प्राकाम्य =मनोभीष्ट वस्तु की प्राप्ति (७) ईशित्व =सभी जीवों पर प्रभुता (८) वशित्व =सबको वशीभूत करने
की शक्ति । मा० १.२.२३ 'अष्टादस : संख्या (सं० अष्टादशन्) । अठारह । मा० ६ १५.७ । अष्टोत्तर : वि० (सं.)। वह संख्या जिसके आगे आठ और हों। रा० प्र०.
मङ्गलाचरण ।