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तुलसी शब्द-कोश
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निवसत : वकृ०० (सं० निवसत् >प्रा०निवसंत) । निवास करता-करते । 'निवसत
जहें नित कृपालु । गी० २.४४.३ निवसी : भूकृ०स्त्री०ब० । बस गयीं, बसी हुईं । 'मृदु मूरति द्वै निवसीं मन मोहैं ।'
कवि० २.२५ निवसे : भूकृ.पु० ब० । बसे, रहे । तेहिं आश्रम निवसे कछु काला ।' मा० १.१५२.७. निवाज : वि० (फा० नवाज)। कृपा करने वाला, शरण देने वाला । 'गरीब
निवाज ।' हनु० १७ निवाजा : भूक०० । शरण में लिया, पालित किया । 'नमत पद रावणानुज
निवाजा।' विन० ४३.७ निवाजि : पूक० । शरण देकर । 'बिबुध समाज निवाजि..... बिरद कहायो।' गी०
६.२१.३ निवाजिबो : भकृ००कए । शरण में लेना, कृपा करना । 'ता ठाकुर को रीझि
निवाजिबो कह्यो क्यों परत मो पाहीं ।' विन० ४.२ निवाजिहैं : आ०भ०प्रब । शरण देंगे। 'राम गरीब-निबाज निवाजिहैं।' गी०
५.३०.२ निवाजु : निवाज+कए । शरणदाता । 'राम गरीब-निवाजु ।' गी० ३.१७.२ निवाजे : भूकृ००० । शरण पाए हुए, कृपाश्रित किए हुए । जैसे होत आये
हनुमान के निवाजे हैं।' हनु० १५ (२) शरण देने पर । 'तेरे निवाजे गरीब
निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ।' हनु० १७ निबाजो, निवाज्यो : भूक०पु०कए । शरण में लिया। 'हनुमान को निवाज्यो
जन।' हनु० २० /निवार निवारइ : (सं० निवारयति>प्रा० निवारइ-निषेध या परिहार करना,
हटाना, दूर करना) आ०प्रए । हटाता है। 'बिनु प्रयास प्रभु काटि निवारै ।'
मा० ६.६१.५ निवारक : वि० (सं.)। दूर करने वाला, निरस्त करने वाला । 'आस त्रास इरिषादि
निवारक ।' मा० ७.३५.५ निवारन : (१) सं०पु० (सं० निवारण)। निरसन, बचाव (हटाना), दूरीकरण ।
'करिअ जतन जेहिं होइ निवारन ।' मा० २.७०.५ (२) वि० । 'प्रहलाद बिषाद निवारन, बारन तारन, मीत अकारन को।' कवि० ७.६ (३) भकृ. अव्यय । दूर करने, निरस्त करने । ‘रच्छक कोपि निवारन धाए ।' मा०
६.१०८.१० निवारा : भूकृ०० (सं० निवरित>प्रा० निवारिअ) । रोका। 'बढ़त बिधि जिमि
घटज निवारा।' मा० २.२६७.२