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तुलसी शब्द-कोश
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निबेरी : निबेरि । मा० २.६४.८ निबेरें: निवृत्त करने से । 'तुलसिदास यह बिपति बागुरी तुम्हहि सो बनै निबेरें ।'
विन० १८७.५
निबेरो: भूकृ०पु०कए० । (१) समाप्त कर दिया । 'एकहि बार आजु बिधि मेरो सील सनेह निबेरो ।' गी० २.७३ . २ ( २ ) निबटाया । 'स्वान को प्रभु न्याव निबेरो ।' विन० १४६.५
निबेही : वि० (सं० निर्वेधित > प्रा० निव्वेहिअ ) । अनाविद्ध = बिना छेद किया हुआ; अछूता, असंपृक्त । 'कोउ न मान मद तजेउ निबेही ।' मा० ७.७१.१ निभ: वि० (सं० ) । तुल्य, सदृश । हिमगिरि निभ तनु ।' मा० ६५३.१ निमज्जत: वकृ०पु० । (१) डुबकी लेता । मा० २. ३१०.८ ( २ ) डूबता हुआ । 'सोक समुद्र निमज्जत कपीसु ।' कवि० ७.४
निमज्जन : सं०पु० (सं० ) । डुबकी ( स्नान ) । मा० २.३१२.६
निमज्जनु : निमज्जन + कए० । ' कीन्ह निमज्जनु तीरथ राजा ।' मा० २.२१६.१ निमज्जहि : आ०प्र० ( अ० ) । डुबकी लेते हैं । मा० २.२२४.२ निमि: सीता-पिता के पूर्वज का नाम जिनकी मृत्यु वसिष्ठ के शाप से हुई । देवताओं ने उन्हें पलकों पर निवास का वरदान दिया था अतएव उनको पलकों के झपकने का कारण माना गया है— देवों की पलकों पर निमि का निवास नहीं है । अत: एकटक नेत्रों के लिए उत्पेक्षा की जाती है कि निमि ने आसन छोड़ दिया - दूर चले गये । 'भए बिलोचन चारु अचंचल | मनहुं सकुचि निमि तजे दिगंचल ।' मा० १.२३०.४ 'निरखहि नारि निकर बिदेहपुर निमि नृप के मरजाद मिटाई । गी० १.१०८.६
निमिराज : निमिवंशज राजा = जनकराज । कवि० १.८ निमिराजु निमिराज + कए । जनकराज = सीरध्वज – सीताजी के पिता । मा०
=
२.२७७
निमिष : सं०पु० (सं०) । (१) आँखों का झपकना, पलकों के उठने - गिरने की क्रिया == निमेष । ( २ ) पलक झपकाने का समय भाग = पल ( जिसमें चार क्षण होते हैं) । 'निमिष सरिस दिन जामिनि जाहीं । मा० १.३३०.१ 'निमिष विहात कलप सम तेही ।' मा० १.२६१.१
निमेष : निमिष (सं० ) । (१) पलक झपकने की क्रिया । 'सनमुख चितवहि राम तन नयन निमेष निवारि ।' मा० ६.११८ ग ( २ ) पल का समय । 'अरध निमेष कलप सम जाहीं । ' मा० १.२७०.८ ( ३ ) पलक ।
निमेषनि: निमेष + संब० । पलकों । 'नयन निमेषनि ज्यों जोगवैं ।' गी०१.६६.३ निमेषें, बैं: निमेष + ब० । झपकियाँ | पलकन्हिहूं परिहरीं निमेषें ।' मा०
१.२३२.५