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तुलसी शब्द-कोश
अमिलाषी : वि० । अभिलाष युक्त । इच्छुक । मा० २.२४४.२ अभिलाषु : अभिलाष+कए । एक ही इच्छा । 'सब के उर अभिलाषु'- २.१ अभिलाषे : क्रि० वि० । अभिलाष किये हुए स्थिति में । 'नृप सब रहहिं कृपा ___अभिलाषे ।' मा० २.२.३ अभिलाषे : भू० कृ० पु० (बहु०) अभिलाष युक्त हुए। 'सुनि पन सकल भूप
अभिलाषे।' मा० १.२५०.५ अभिषेक : सं० पु० (सं.) (१) नहाना या नहलाना, पूर्णतः स्नान कराना । ___ 'सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना ।' २.१५७.७ (२) राज्याभिषेक सिंहासन
पर आसीन होने का विशेष संस्कार जिसमें तीर्थ-जल से स्नान कराया जाता
है। मा० २.५% ३.६.४ । अभिषेकतः : क्रि० वि० (सं०) । अभिषेक से । मा० २१ श्लोक २ अभिषेक, क: अभिषेक+कए । मा० २.८; २.१०.७ अभीष्ट : वि०+सं० (सं०) सर्वथा इष्ट, पूर्णतया मनचाहा । 'अति अभीष्ट बर
पाइ।' मा० ७.३५ अभूत : वि० (सं.)। जो न हुआ हो। अपूर्व, अद्भुत । 'उपमा एक अभूत भई
तब ।' गी० १.२६.६ अभूतरिपु : (१) वि (सं०) जिस के शत्रु न हुए हों। अजातशत्रु । सर्वथा शत्रुहीन ।
(२) भूतों=प्राणियों का जो शत्रु न हो । निर्वैर । सर्वथा वैर-रहित । 'सम
अभूतरिपु बिभद बिरागी।' मा० ७.३८.२ अभेद : वि० (१) (सं० अभेद्य)। जिसका किसी प्रकार भेदन न किया जा सके। _ 'कवच अभेद बिप्र गुर पूजा।' मा० ६.८०.१० (२) (सं० अभेद)। भेद
रहित, अद्वैत निर्विकार, जिससे पृथक् कोई सत्ता न हो । 'अज अकल अनेह
अभेद ।' मा० १.५० अभेदबादी : वि० ० (सं० अभेद-वादिन) जीव और जगत् से ब्रह्म को तथा ब्रह्म
से जीवजगत् को भिन्न न मानने के सिद्धान्त के प्रतिपादक । अद्वैतवादी । विवर्त सिद्धान्त के आधार पर सृष्टि की व्याख्या करने वाले । तेइ अभेदबादी ग्यानी नर।' मा० ७.१००.२
शाङ करवेदान्त पूर्ण अभेदवादी है; माध्ववेदान्त पूर्ण द्वैतवादी तथा शेष वैष्णव वेदान्त भेदाभेद या द्वैताद्वैत मान्य करते हैं-जैसे रामानुज अंशरूप जीवजगत् की पृथक् सत्ता स्वीकृत करके भी अंशी ब्रह्म से अभेद मानते हैं।
गोस्वामी जी ने निर्गुण मतवादी के लिए इस शब्द का प्रयोग किया है। अभेरा : सं० पु । मुठभेड़, भिड़न्त, टकराव, धक्कमधक्का । विन० १८६.३ अभोगी : वि० पुं० (सं० अभोगिन्) । भोग-वासना-रहित, मुक्त । 'अज अनवद्य
अकाम अभोगी।' मा० १.६०.३