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तुलसी शब्द-कोश
नकुल : सं०० (सं०) । नेवला । मा० १.३०३.३ नक : सं०० (सं.)। मगर (जलजन्तु विशेष)। मा० ६.४.५ नख : सं०० (सं०) । नाखून । मा० १.१०६.७ नखत : सं०० (सं० नक्षत्र>प्रा० नक्खत्त) । तारागण । मा० १.२३६.१
(२) ज्योतिष गणना में चन्द्रमा के सत्ताईस नक्षत्र =अश्विनी आदि । नखतु : नखत+कए । सत्ताईस में से उपयुक्त शुभ नक्षत्र । 'ग्रह तिथि नखतु
जोगु बर बारू।' मा० १.३१२.६ नखन्हि : नख+संब० । नखों (से)। 'नखन्हि लिलार बिदारत भयऊ ।' मा०
६.९८.६ नखसिख : क्रि.वि. (सं० आनख-शिखम्) । नखों से शिखा पर्यन्त =सर्वाङ्ग
प्रत्यङ्ग (देवों के लिए नीचे के अङ-चरण से आरम्भ करके वर्णन शिखा तक चलता है-इस क्रम के आधार पर यह शब्द बना है)। 'नख सिख निरखि
राम के सोभा ।' मा० १.२३४.४ ।। नग : सं०० (सं०)। हीरा, रत्न। 'सोभा सिंधु संभव से नीके नीके नग हैं।" ___ गी० २.२७.२ (२) मुक्ता । 'निज गुन घटत न नाग-नग परखि परिहरत
कोल ।' दो० ३८५ नगन : वि० (सं० नग्न ) । निर्वसन । मा० ५.११ ४ नगफंग : (दे० फंग) छली लुच्चे का फन्दा। धूर्त-जाल (सं० नग्न =निर्लज्ज, धूर्त,
क्षपणक>प्रा० नग्ग>नग+फंग) । कठिन फँसाव । 'हो भले नगर्कंग परे गढ़ोवे ।' कृ० ११ (इसे 'नाग' का फन्दा भी माना जा सकता है- अजगर
आदि का बन्धन ।) नगफनियाँ : सं०स्त्री०ब० । सपं-फणाकार (या ताम्बूलाकार) कर्णाभरण । 'काननि ____ नगफनियाँ ।' गी० १.३४.४ नगर : सं०० (सं०) । पुर, शहर। मा० १.३६ नगरबासिन्ह : नगरबासी+संब० । पुर-वासियों (को) । 'सकल नगर-बासिन्ह सुख
दीन्हा ।' मा० १.२० ०.७ नगरी : सं०स्त्री० (सं०) । नगर । कवि० ७.१६६ नगर : नगर+कए । 'जाइ देखि आवहु नगरु । मा० १.२१८ नघुषु : नहुष>नघुष+कए। राजा नडुष । 'ससि गुरतिय गामी, नघुषु चढ़ेउ
भूमि सुजान ।' मा० २.२२८ नचत : नाचत । 'किलकि सखा सब नचत मोर ज्यों ।' कृ० १६ नहि : नाहिं । 'नचहिं मोर ।' गी० २ ४७ १३