________________
476
तुलसी शब्द-कोश देवतन्ह, न्हि : देवता+संब० । देवताओं (ने आदि)। 'इहाँ देवतन्ह अस्तुति
कीन्ही ।' मा० ६.८६.५ देवतरु : कल्पवृक्ष । मा० १.३२.११ देवता : देव । मा० १.२७६.७ देवधुनि, गी : सं०स्त्री० (सं० देवधुनी) । गङ्गा । मा० १.४०.३ देवनदी : गङ्गा । कवि० ७.१४५ देवन्ह, न्हि : देव+संब० । देवों (ने, को आदि) । 'देवन्ह दीन्हीं दुंदुभी।' मा०
१.२८५ दवपति : इन्द्र । मा० २.२६६.३ देववधू : अप्सरा । मा० १.२६२.४ देवमायां : देवों की माया से । 'देवमायाँ मति मोई ।' मा० २.८५.६ । देवमाया : देवताओं की माया=ब्यामोहक शक्तिपात । मा० २.३०२ देवर : सं०० (सं.)। पति का अनुज । मा० २.६६.१ देवरिषि : (सं० देवर्षि =देव ऋषि) देवजातीय ऋषि (नारद) । मा० १.६८.४ देवल : सं०० (सं० देवालय) । देव मन्दिर । 'तुलसी देवल देव को लागे लाख
करोरि ।' दो० ३८४ देवसरि : देव नदी । गङ्गा । मा० २.८७.२ देवहूति : सं०स्त्री० (सं.)। ध्र व के पितृव्य प्रियव्रत की पुत्री कर्दम ऋषि की
पत्नी कपिल मुनि की माता । मा० १.१४२.५ देवा : देव । मा० १.३४.७ देवाइ : पूकृ० । दिला कर। भूपति गवने भवन तब दूतन्ह बासु देवाइ ।' मा०
१.२६४ देवाई : (१) देवाइ। 'पूंछ रानि निज सपथ देवाई।' मा० २.१६.१
(२) भूकृ०स्त्री० । दिलायी। 'सकुचि राम निज सपथ देवाई।' मा० २.६६.५ देवान : दिवान । राजा का दर्बार । 'मारे बागबान ते पुकारत देवान गे।' कवि०
देवापगा : सं०स्त्री० (सं०-देव+आपगा=नदी) । गङ्गा । मा० २ श्लो० १ देवैया : वि० । देने वाला। 'नीकें देखे देवता देवया बने गथके ।' कवि० ७.२४ देस : सं०० (सं० देश) । स्थान, भूभाग । मा० १.१५३ (२) राज्य आदि । देसकाल : स्थानगत परिमाण =ऊँचाई, निचाई, मोटाई, परत्व, अपरत्व, दूरी समीपता
आदि+कालगत परिमाण=छोटाई, बड़ाई, क्षण, घड़ी, वर्ष, मास, कल्प आदि । इन्हीं से विविध अवसरों तथा परिस्थितियों का निर्माण होता है जिन से सभी वस्तुएँ परिछिन्न रहती हैं। देश में ही 'दिशा' भी सम्मिलित है अतः 'दिक्काल' भी कहा जाता है । मुक्त दशा में आत्मा इन परिच्छेदों से छुटकारा